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न्यायिक हादसा (A Judicial Accident)

Adv. Dilip Kumar by Adv. Dilip Kumar
November 10, 2021
in Latest Articles
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न्यायिक हादसा (A Judicial Accident)
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न्यायिक कार्य के दौरान कभी-कभी ऐसी अजीबोगरीब स्थिति उत्पन्न हो जाती है जिसे न्यायिक हादसा की संज्ञा दी जा सकती है। न्यायालय में दो तरह के अधिकारी होते है। प्रथमतः न्यायिक अधिकारी यानि जज और दूसरा न्यायालय का अधिकारी (Officer of the Court) यानि अधिवक्ता। दोनों अधिकारी न्यायालय के नीचे है। यानि इन दोनों अधिकारी से ऊपर न्यायालय होता है। दोनों अधिकारी न्यायालय रूपी गाड़ी के दो पहिया है। दोनों पहिया एक-दूसरे का सहयोगी है जो न्यायिक कार्य को आगे बढ़ाता है। कभी-कभी दोनों पहिया आमने-सामने आ जाता है। दोनों एक दूसरे को सुनने के बदले अपने – अपने  ज्ञान का लोहा मनवाने का प्रयास करता है। ऐसी स्थिति को मात्र अनुचित कहकर टालने का प्रयास सही नहीं है। मेरे समझ से ऐसी स्थिति एक न्यायिक हादसा है, जिसको रोकना दोनों अधिकारी का न्यायिक दायित्व है।

ऐसी ही एक न्यायिक हादसा केरल के कोट्टम जिला के मुंसिफ़ के न्यायालय में घटित हुई है। वर्ष 2013 में मुंसिफ़ कोर्ट में ससुर ने अपनी पूतोहू की निष्कासन तथा निषेधाज्ञा हेतु एक वाद प्रस्तुत किया था। विद्वान मुंसिफ़ नें Family Court Act की धारा 07 का हवाला देकर ससुर द्वारा प्रस्तुत वाद को खारिज कर दिया। मुंसिफ़ न्यायालय द्वारा  ससुर को निर्देशित किया गया कि वह परिवार न्यायालय में वाद प्रस्तुत करे।

तत्पश्चात ससुर ने परिवार न्यायालय में वाद प्रस्तुत किया। परिवार न्यायालय द्वारा भी दिनांक 29.02.2016 को ससुर द्वारा प्रस्तुत वाद को यह कहते हुए खारिज कर  दिया गया कि यह वाद मुंसिफ़ न्यायालय में प्रस्तुत किया जाना चाहिए।

तत्पश्चात यह मामला केरल उच्च न्यायालय के समक्ष पहुंचा। माननीय न्यायालय द्वारा Family Court Act की धारा 07 का हवाला देकर निर्णीत किया गया कि उपरोक्त मामला मुंसिफ़ कोर्ट में ही प्रस्तुत क्या जाना चाहिए था। तब-तक लगभग 07-08 वर्ष का महत्वपूर्ण समय बीत गया। हालांकि माननीय केरल उच्च न्यायालय ने मुंसिफ़ न्यायालय को आदेशित किया कि हर परिस्थिति में उक्त वाद की सुनवाई 06 माह की अवधि में पूरी किया जाए।

2021(1) CCR 538 (Kerala High Court)
Mat. Appeal No. 842/2016
Date of Judgement 16.10.2020

 

 

 

 

Adv. Dilip Kumar

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