केरल हाइकोर्ट ने जयदेवी बनाम नारायण पिलाई व अन्य के मामले में व्यवस्था दिया है कि यदि वसीयत दो या दो से अधिक व्यक्ति द्वारा संयुक्त रूप से निष्पादित की गई है और उसमें से किसी एक की मृत्यु हो जाती है तब केवल मृत वसीयतकर्ता की संपत्ति ही प्रभावी होगी। जीवित वसीयतकर्ता की संपत्ति पर वसीयत प्रभावी नहीं होगी।
उपरोक्त वसीयत के वसीयतकर्ता पति और पत्नी थे और वसीयत के अनुसार जीवित वसीयतकर्ता को वसीयत के किसी भी प्रावधान को बदलने का अधिकार नहीं था। इस खंड के अनुसार वह वसीयत अंतिम था और उसमें संशोधन करने का हक किसी भी पक्षकार को नहीं था। वसीयत के अनुसार वसीयतकर्ता को वसीयत की भूमि को बेंचने का हक भी नहीं था। विवाद तब उत्पन्न हुई जब एक वसीयतकर्ता की मृत्यु के बाद दूसरे वसीयतकर्ता ने वसीयत की भूमि में से अपना हिस्सा बेंच दिया। वादी ने उक्त विक्रय पत्र को न्यायालय में चुनौती दिया था। वादी का तर्क था कि वसीयत में की गई व्यवस्था के उल्लंघन में विक्रय-पत्र निष्पादित किया गया था अतः विक्रय शून्य है। परंतु न्यायालय ने वादी के तर्क को नकार दिया और कहा, कि “जीवित वसीयतकर्ता को अपनी मृत्यु तक संपत्ति को अपने अनुसार व्यवस्था करने का पूरा अधिकार है। न्यायालय ने व्यवस्था दिया कि वसीयत में शामिल खंड जीवित वसीयतकर्ता को किसी एक वसीयतकर्ता की मृत्यु के बाद वसीयत को संशोधित करने का कोई अधिकार नहीं होगा, केवल वसीयतकर्ता की संपत्ति के संदर्भ में समझा जाना चाहिए। यदि कोई वसीयतकर्ता कोई संशोधन करना चाहता है, तो यह उनके जीवनकाल के दौरान संयुक्त रूप से किया जाना चाहिए। कानून के अनुसार “इन दो खंडों की व्याख्या भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 82 के अधीन की जानी है। यानि वसीयत के किसी खंड का अर्थ सम्पूर्ण वसीयत से निकाला जाएगा और उसके प्रत्येक भाग को एक साथ पढ़ा और समझा जाना है, न कि अलग-अलग-अलग। न्यायालय ने व्यवस्था दिया कि जीवित वसीयतकर्ता द्वारा अपने जीवनकाल में अपनी संपत्ति का विक्रय करने का पूरा हक था अतः विक्रय पत्र कानूनी रूप से वैध था।
दिलीप कुमार
संपत्ति और परिवार के अधिवक्ता
RFA NO. 628 OF 2004 (C) Kerala High Court
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