This is a sample question.
Here is the sample answer.
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General Frequently Asked Questions and their Answers
पत्नी का भरण-पोषण करना प्रत्येक पति का दायित्व है, उसको भविष्य में भरण-पोषण न देने का करार लोकनीति के विरुद्ध है। वैसा प्रत्येक करार जो लोकनीति के विरुद्ध होता है, कानून के नजर में शून्य होता है यानि पत्नी ने यदि स्वेच्छया से भी भरण-पोषण का अधिकार त्याग दिया है तो भी कानून के नजर में वह त्याग, त्याग की श्रेणी में नहीं आ सकता है। अतः आपकी पत्नी अपने भरण-पोषण के वाद में सफल हो जायगी।
यदि कोई पुरुष अपनी पत्नी की मृत्यु/तलाक़ के पश्चात् किसी दूसरी स्त्री से शादी करता है तो वह स्त्री अपनी पति की दूसरी पत्नी कहलाती है.
कोई पुरुष अपनी पत्नी के जीवित रहते दूसरी शादी तो रचा सकता है, परन्तु वह स्त्री उस पुरुष का पत्नी नहीं हो सकती है।
उत्तर: – तलाक के साथ ही पति-पत्नी के बीच का तमाम रिश्ता समाप्त हो जाता है. वह व्यक्ति अब आपका पति नहीं है, जिससे आप भरण-पोषण की मांग करना सोच रही है. परन्तु भरण-पोषण ईसका अपवाद है. दूसरी शादी करने तक भरण-पोषण के प्रयोजन हेतु कानून आपके तलाकसुदा पति को ही आपका पति मानता है. अतः आप अपने पति से भरण-पोषण की रकम की मांग कर सकती है, यह आपका क़ानूनी हक़ है और नहीं मिलने पर न्यायालय का दरवाजा खटखटा सकती है।
Answer: – Yes, the daughter has a right in the property standing in the name of her deceased mother. So far, the question of disowned her daughter through an affidavit and the same is published in a newspaper, does not have any legal force. The said affidavit is nothing but a bag of winds. According to section 15 & 16 of the Hindu Succession Act 1956, the property of a Female Hindu dying intestate shall devolve firstly, upon the sons and daughters (including the children of any predeceased son or daughter) and the husband. Since the daughter is class-I heirs of her mother, Hence, she is entitled to equal share like her brother and father in the mother’s property.
उत्तर:– आप निश्चित रूप से पढ़ी-लिखी महिला है, यह ख़ुशी की बात है. आप खाने के प्रत्येक बर्तन (जैसे भात, दाल, शब्जी इत्यादि) में अलग-अलग चम्मच डाल दीजिये. मैं विश्वास करता हूँ कि आपकी सासु माँ हाथ से खाना परोसना छोड़ देंगी.
उत्तर:– दहेज देना और लेना दोनों अपराध की श्रेणी में आता है। अपराधिक श्रेणी में आने वाले लेन-देन की वापसी संभव नहीं होता हैं। परन्तु दहेज़ उसका अपवाद है. कानून यह मानकर चलता है कि दहेज़ दुल्हन के फायदा के लिए दिया जाता है। दुल्हन चाहे तो अपनी ससुर से उक्त राशि की मांग कर सकती है। यदि आपके ससुर आपको 18 लाख रुपया नहीं लौटते है तो आप Civil Court में दहेज़ वापसी के लिए वाद ला सकती है.
U/S 06 of the DP Act.
उत्तर:- आपने आपत्ति का आधार नहीं बताया है. सामान्यतः Consent Free नहीं होना, Age कम होना, पक्षकारो का प्रतिबंधित नातेदारी के अन्दर का सदस्य होना इत्यादि आपत्ति का आधार हो सकता है. ऐसी स्थिति में Marriage Registrar 30 दिनों के भीतर अपने स्तर से objection का निबटारा करने के बाद ही शादी कराने या न कराने का आदेश पारित कर सकेगा. यदि आदेश से आप पीड़ित है तो 30 दिनों के भीतर District Court/District Judge के यहाँ अपील प्रस्तुत कर सकती हैं।
Answer: – पत्नी भरण-पोषण की हक़दार होती है. पत्नी का अर्थ “Legally wedded wife” होता है. यदि कोई हिन्दू पुरुष अपनी पत्नी के जीवन-काल में दूसरी शादी करता है तो दूसरी पत्नी को “Legally wedded wife” नहीं कहा जा सकता है. मुस्लिम विधि में साली से शादी अवैध है. अतः वहां भी दूसरी पत्नी “Legally wedded wife” नहीं है. अतः दोनों ही परिस्थिति में आप भरण-पोषण के दायित्व से मुक्त है. परन्तु आपने पहली शादी को छुपाकर दूसरी शादी कर लिया हो तो आप भरण-पोषण के दायित्य से मुक्त नहीं हो सकते है।
Answer: – प्रतिकर के लिए आवेदन (दावा केस) प्रस्तुत करने के लिए दुर्घाटना का स्थान महत्वपूर्ण नहीं है. वह आप सुविधानुसार निम्नलिखित जगहों में से किसी एक जगह दावा का आवेदन ला सकते है जैसे जहाँ घटना घटी है या जहाँ पर आप निवास करते है, या जहाँ आप कोई कारोबार करते है.
U/s 166 MV Act.
प्रश्न :- मेरे पिताजी केवल कर्ज छोड़कर स्वर्गवासी हो गये। क्या उस कर्ज को सधाने की जवावदेही मुझपर है?
उत्तर:- आपके पिताजी के द्वारा लिए गए कर्ज सधाने की जवावदेही केवल और केवल आपके पिताजी द्वारा छोड़ी गयी संपत्ति पर है. यदि आपके पिता जी ने कोई संपत्ति नहीं छोड़ी है, तो उनके द्वारा लिए गए कर्ज सधाने की जवावदेही भी आप पर नहीं है.
(Para No. 287 Mulla Hindu Law)
उत्तर:- मुस्लिम विधि में पति द्वारा दूसरी शादी मान्य है. पति द्वारा दूसरी शादी Restitution of Conjugal Right के वाद में प्रतिरक्षा का मान्य आधार नहीं है. अतः पति द्वारा Restitution of Conjugal Right का वाद पूर्णतः पोषणीय हैं।
प्रश्न :- मेरे पिताजी केवल कर्ज छोड़कर स्वर्गवासी हो गये। क्या उस कर्ज को सधाने की जवावदेही मुझपर है?
उत्तर:- आपके पिताजी के द्वारा लिए गए कर्ज सधाने की जवावदेही केवल और केवल आपके पिताजी द्वारा छोड़ी गयी संपत्ति पर है. यदि आपके पिता जी ने कोई संपत्ति नहीं छोड़ी है, तो उनके द्वारा लिए गए कर्ज सधाने की जवावदेही भी आप पर नहीं है.
(Para No. 287 Mulla Hindu Law)
Answer: – शादी के बाद पति-पत्नी के बीच विवाद होना कोई बड़ी बात नहीं है। यदि आप सोचती है कि आपके जीवनसाथी के बीच विवाद न हो तो यह असंभव है, परंतु विवाद न्यायालय तक नहीं जाए, ईसके लिए आपको निम्नलिखित कार्य करना चाहिए:-
बदलाव :-
- आपको अपनेआप मे बदलाव लाना होगा। यानि आपको समझना होगा कि अब आप अकेला नहीं है। आपको अपना प्रत्येक कार्य अपने जीवनसाथी को विश्वास मे लेकर ही करना चाहिए।
- यदि आपमें “अंदर कुछ” और “बाहर कुछ और” वाली प्रवृति है तो उसे तुरंत और पूर्णतः त्याग कर देना चाहिए।
- शादी से पहले की यदि कोई गोपनीय बात है, तो उसे अपने जीवनसाथी को बताने की कोई आवश्यकता नहीं है।
Answer:- आप LMV लाइसेंस पर ट्रौली लगा हुआ ट्रेक्टर भी चला सकते है, उसके लिए अलग से लाइसेंस की जरुरी नहीं है। (Civil Appeal No. 8395-8396/2017 Supreme Court of India)
उत्तर:- खेती करना किसी के लिए भी प्रतिबंधित नहीं है, यदि आप खेती करते है तो किसान के रूप में मिलने वाली सरकारी सुबिधा प्राप्त करने के हक़दार है. सरकारी या प्राइवेट नौकरी किसान को सरकारी लाभ से बंचित नहीं कर सकता है. अतः आप किसान के रूप में मिलने वाली सरकारी सुबिधा प्राप्त करने का हक़दार है।
Answer: – हिन्दू विधि में (1955) के बाद दूसरी पत्नी नामक कोई शब्द नहीं रहा । यदि 1955 के बाद पत्नी के रहते हुये कोई व्यक्ति पुनः शादी करता है तो उस महिला को हिन्दू विधि रखैल (Concubine) नाम से संबोधित करता है । रखैल चूंकि उत्ताधिकारी की श्रेणी मे नही आती है अत: उसे संपत्ति मे हिस्सा पाने का कोई हक नहीं है।
उत्तर:- विधवा द्वारा गोद लिया गया बच्चा विधवा के साथ साथ उसके मृत पति का बच्चा भी समझा जाता है। अतः आपके दत्तक पुत्र को आपके पति की Property मे भी हिस्सा आवश्य मिलेगा ।
AIR 1970 SC 343
उत्तर:- आप अपनी अवयस्क पुत्री की नैसर्गिक संरक्षक होने के नाते वह तमाम कार्य कर सकते है जो अवयस्क या उसकी संपत्ति की बेहतरी के लिए आवश्यक हो, परंतु आप अवयस्क की संपत्ति को संबन्धित जिला जज की अनुमति के बिना नहीं बेंच सकते है ।
U/S 08 of the Hindu Minority & Guardianship Act 1956.
उत्तर:- हिन्दू धर्म के अनुसार दत्तक लेने और देने का अधिकार केवल और केवल पिता को ही है। परंतु जब पिता मर चुका हो, सन्यासी हो गया हो, सक्षम कोर्ट द्वारा पागल घोषित हो चुका हो या हिन्दू न रह गया हो तो माँ अपनी पुत्र/पुत्री को दत्तक दे सकती है।
अतः आप अपने पुत्र को दत्तक दे सकती है।
U/s 09(3) of the Hindu Adoption & Maintenance Act 1956
उत्तर:- यदि विवाह के दोनों या कोई एक पक्षकार हिन्दू हो और शादी विदेश मे सम्पन्न हुई हो, वैसी परिस्थिति में विवाह – विच्छेद की कार्यवाही Special Marriage Act के तहत ही करनी होगी, अन्यथा आप असफल हो जाएंगी ।
Page 899 of Mulla Hindu Law 22nd Edition
Answer: – आप दाम्पत्य अधिकार के पुनर्स्थापन हेतु परिवार न्यायालय मे वाद ला सकते है। यदि परिवार न्यायालय ईस निष्कर्ष पर पहूँचती है कि आपकी पत्नी बिना किसी वैध कारण से आपसे अलग रह रही है, तो परिवार न्यायालय टूटे हुये दाम्पत्य संबंध को पुनर्स्थापित करने का आदेश दे सकती है ।
Section 281 Mulla Mahomden Law
Answer: – पिता, बाबा या दादा (बाबा के पिता) से प्राप्त संपत्ति पैतृक संपत्ति कहलाती है । पिता, बाबा या दादा (बाबा के पिता) के अलावे अन्य किसी व्यक्ति से प्राप्त संपत्ति को किसी भी सूरत मे पैतृक संपत्ति नहीं कही जा सकती है ।
Section 221 Mulla Hindu Law
Answer:- मुस्लिम विधि के अनुसार मौखिक दान एक वैध दान है, परंतु Muslim Personal Law तभी applicable है जब दोनों पक्षकार मुस्लिम हो। चूँकि उपरोक्त प्रश्न में दान पानेवाला व्यक्ति मुस्लिम नहीं है, अतः मुस्लिम महिला द्वारा हिन्दू व्यक्ति के पक्ष में किया गया दान कानून के नजर में शून्य है।
Section 02 of the Sariat Application Act 1937.
Answer: – मृत व्यक्ति के जीवनकाल में वास्तव में जन्मा बच्चा और उनकी मृत्यु की तारीख को केवल गर्भ में आया बच्चा के बीच कोई विभेद नहीं किया जायेगा। यानि माँ के मुस्लमान होने से स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं होगा।
Section 27 (C) of the Indian Succession Act 1925