मुजफ्फरपुर की एक घटना ने फिर से यह प्रश्न खड़ा कर दिया है कि क्या हमारे समाज में हर व्यक्ति को सही कानूनी सलाह मिल पा रही है। हाल ही में एक महिला ने बताया कि उसके और उसके पति के बीच मुकदमे चल रहे है। एक दिन जब वह न्यायालय से लौटकर अपने घर आई तो पाया कि उसकी सास ने मुख्य दरवाजे का ताला बदल दिया है। महिला जब पुलिस से मदद मांगने पहुँची, तो पुलिस ने पति से बात करने के बाद महिला से कहा कि वह दरवाज़ा खुलवाने का आदेश न्यायालय से लेकर आए।
बातचीत के दौरान यह तथ्य सामने आया कि पति और पत्नी के बीच 06 मामला लंबित है। इतने सारे मुकदमों के बावजूद महिला ने अब तक घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत कोई वाद दायर नहीं किया था, जबकि उसके मामले में यह सबसे उपयुक्त और प्रभावी उपाय हो सकता था। यह स्थिति केवल एक महिला की नहीं है, बल्कि समाज में असंख्य महिलाएँ और पुरुष ऐसे ही अनावश्यक मुकदमों में उलझे रहते हैं।
समस्या का मूल कारण
आज सबसे बड़ी समस्या यह है कि आम नागरिकों को सही कानूनी जानकारी उपलब्ध नहीं हो पाती। कई बार गलत कानूनी सलाह अनजाने में उन्हें ऐसे मुकदमों में धकेल देती है, जिनसे उन्हें वास्तविक लाभ नहीं मिलता। परिणामस्वरूप न्यायालयों पर मुकदमों का बोझ बढ़ता है और पीड़ित को न्याय भी नहीं मिल पाता। विवाद वर्षों तक लंबित रहने के कारण पीड़ित पक्ष मानसिक, सामाजिक और आर्थिक संकट झेलता है। इतना ही नहीं, समाज में यह गलत संदेश भी जाता है कि न्यायपालिका की स्थिति ठीक नहीं है और उसकी गति कछुए से भी धीमी है।
आवश्यक पहल
- सही कानूनी सलाह हर नागरिक का अधिकार है।
जैसे चिकित्सा के क्षेत्र में योग्य डॉक्टर से सही परामर्श आवश्यक है, वैसे ही न्याय की प्राप्ति के लिए सक्षम और ईमानदार कानूनी सलाह अनिवार्य है। - कानूनी साक्षरता का विस्तार होना चाहिए।
सरकार, बार काउंसिल और समाजसेवी संगठन मिलकर अभियान चलाएँ ताकि हर नागरिक अपने विवाद के अनुसार उचित कानूनी उपायों से परिचित हो सके। - ग़लत कानूनी सलाह पर निगरानी ज़रूरी है।
गलत कानूनी सलाह पर कड़ी निगरानी, गहन विश्लेषण और ठोस कार्रवाई जरूरी है, ताकि सिर्फ मुकदमेबाज़ी बढ़ाने के लिए नागरिकों को गुमराह होने से बचाया जा सके। - वैकल्पिक विवाद निपटान और मध्यस्थता को प्रोत्साहन मिले।
इससे न केवल परिवार टूटने से बचेंगे बल्कि न्यायालयों का बोझ भी कम होगा।
निष्कर्ष
न्याय केवल न्यायालय के आदेश से नहीं, बल्कि सही कानूनी मार्गदर्शन यानि सही सलाह से शुरू होता है। यदि शुरुआत में ही पीड़ित पक्ष को उचित सलाह मिल जाए तो न तो उन्हें बेवजह मुकदमों में उलझना पड़ेगा और न ही वर्षों तक न्याय के लिए भटकना पड़ेगा। इसलिए समय की मांग है कि समाज और व्यवस्था मिलकर यह सुनिश्चित करें कि हर नागरिक को सही कानूनी सलाह मिले और गलत सलाह देने वालों की एक सूची बन सार्वजनिक रूप से प्रकाशी किया जाए। यही न्याय और समाज सुधार की दिशा में पहली और सबसे अहम सीढ़ी होगी।
दिलीप कुमार
संस्थापक – डिस्प्यूट-ईटर दर्शन।
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