वर्ष 2000 की बात है। मेरे गाँव का एक विवाहित व्यक्ति, जिसके तीन छोटे-छोटे बच्चे थे, जिनमें एक दूधमुंहा भी था, अचानक घर छोड़कर चला गया। न उसने किसी से कुछ कहा, न कोई कारण बताया। उसे बहुत खोजा गया, पर उसका कोई पता नहीं चला। उस समय आसपास के गाँवों के भी कुछ लोग लापता हो गए थे, और उनका भी कोई पता नहीं चला।
उसकी पत्नी, जो गरीब और साधारण परिवार से थी, अपने परिश्रम और संघर्ष के बलबूते बच्चों का पालन-पोषण करती रही। दूसरों के खेतों में मेहनत, कभी किसी के घर बर्तन माँजना, बस इस उम्मीद में कि उसके बच्चों का भविष्य सुरक्षित रहे।
साल बीते। बच्चे बड़े हुए, अपने पैरों पर खड़े हुए, और धीरे-धीरे शादी कर अपने जीवन को सँवारा। घर में अब पोते-पोतियाँ खेलने लगे, लेकिन उस पति का कोई पता नहीं चला।
अंततः गाँववालों ने उसे समझाया “अब तुम्हारे पति का श्राद्ध कर दो। हिंदू धर्म में सात वर्ष से अधिक लापता व्यक्ति को मृत माना जाता है।” पर वह तैयार नहीं हुई।
समय का पहिया फिर घूमा। उसका बड़ा बेटा, जो अपने पीछे तीन छोटे-छोटे बच्चे छोड़ गया था, असमय ही चल बसा। माँ ने अब अपने बेटे का भी श्राद्ध किया। वह पत्थर बन चुकी थी, पर आँसू अब भी उसकी आँखों से टपकते थे।
बेटे की मृत्यु के कुछ महीने बाद, पास के गाँव में सारंगी बजाने वाले कुछ योगी आए। वे घर-घर भिक्षा माँगते और रात में भजन-कीर्तन करते। उनकी वेशभूषा, बोलचाल और आचरण सब साधुओं जैसा था।
कुछ दिनों बाद उन्होंने गाँव के कई परिवारों को संदेश भेजा कि वे अगल-बगल के गाँव के रहनेवाले है, उनका नाम अमुख है। अपने घरवालों से मिलना चाहते हैं। जब गाँववाले मिले, तो आश्चर्यचकित रह गए। यह वही लोग थे, जो पचीस साल पहले अपने परिवार छोड़कर गायब हो गए थे।
महिला ने अपने पति को पहचान लिया। आँसुओं में बहते हुए बोली “तुम इतने वर्षों तक कहाँ थे? एक बार भी मेरी और बच्चों का ख्याल नहीं आया? एक बार भी याद नहीं किया कि तुम्हारे बच्चे कैसे पले-बढ़े?” एक बार भी याद नहीं आया कि तुम्हारी पत्नी और बच्चे 25 वर्षों तक कैसे रह हरे होंगे? जब योगी ने अपने तीसरे बच्चे के बारे में पूछा, तो उसने रोते हुए कहा “वह कुछ महीने पहले भगवान के पास चला गया।”
योगी कुछ देर मौन रहा, फिर घर से भागने और योगी बनने की पूरी कहानी बताई। पत्नी ने कहा “अब जब लौट आए हो, तो यहीं रहो। हम साथ रहेंगे।” योगी ने हामी भरी, पर एक शर्त रखी “मैं योगी बन चुका हूँ। यदि संसार में लौटना है, तो पहले ‘योग-संस्कार’ से विदाई लेनी होगी। इसके लिए भंडारा करना पड़ेगा। तभी मैं अपने परिवार के साथ रह सकता हूँ।”
भंडारे का खर्च लगभग दो लाख रुपये बताया गया। गरीब परिवार होने के कारण पत्नी ने समय माँगा। योगी ने कहा “जितनी जल्दी पैसा जुटा दोगी, उतनी जल्दी मुझे ‘छूटी’ मिलेगी।”
पत्नी और बच्चों ने विश्वास कर लिया। उन्होंने कर्ज लेकर पैसा जुटाया और योगी द्वारा बताई गई जगह वाराणसी जाकर खुद पहुंचा दिया। पत्नी ने उसे एक मोबाइल भी दिया ताकि संपर्क बना रहे।
पैसा पहुँचते ही योगी का व्यवहार बदल गया। कुछ दिन बाद उसने फोन उठाना बंद कर दिया। जब पत्नी उससे मिलने वनारस पहुँची, तो पता चला कि वह लोग वहाँ से कही दूसरे जगह चले गए है। पत्नी रोती बिलखती पुनः मुजफ्फरपुर आ गई। सभी योगियों का मोबाईल भी बंद आ रहा है। धीरे-धीरे सामने आया कि आसपास के गाँवों की और भी स्त्रियाँ इसी तरह ठगी का शिकार हुई हैं।
तब सबको समझ में आया कि यह परिवार आने की कोई योजना नहीं थी, बल्कि ठगी की सुनियोजित और संगठित योजना थी। योगी बनाकर ठगने की तरकीब।
संदेश:
जो व्यक्ति वर्षों तक अपने परिवार की जिम्मेदारी से भागता रहा, जिसने अपनों को दुख में छोड़ दिया, और फिर अवसर देखकर उन्हें फिर से ठग ले, वह योगी नहीं, बल्कि समाज का अपराधी है। ऐसे “योगियों” से सतर्क रहें। यह केवल व्यक्तिगत ठगी नहीं, बल्कि संगठित अपराध का नया रूप है। समाज को जागरूक होना चाहिए, और धर्म या आस्था के नाम पर ठगी को कभी बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए।
✍ दिलीप कुमार अधिवक्ता










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