“अपना घर, हर किसी का सपना होता है। लेकिन इस सपने तक पहुँचने की राह संघर्षों से भरी होती है। 04 अगस्त मेरे लिए सिर्फ एक तारीख नहीं, बल्कि आत्म-संतोष की छाया है।
“किराया मुक्ति दिवस” यह शब्द भले ही सामान्य लगे, लेकिन मेरे लिए यह एक पूरी जीवन यात्रा की परिणति है। एक समय था जब मैं 27 वर्षों तक किराये के मकानों में रहा। मैंने अनुभव किया कि आवासीय किरायेदार की जीवन रामलीला पार्टी की तरह होता है। स्थान बदलना, मकान मालिक की मर्जी के अनुसार जीवन जीना, मानसिक तनाव सहना। यह सब मेरा यथार्थ था।
चार साल पहले जब मैंने पहली बार “किराया मुक्ति दिवस” पर लेख लिखा था, तब मैंने दुनिया के लोगों को दो काल्पनिक सूचियों में विभाजित किया था:
- पहली सूची: जिनके पास अपना घर है।
- दूसरी सूची: जो किराये पर रहने को मजबूर हैं।
हर वह व्यक्ति जो दूसरी सूची में है, दिन-रात मेहनत करता है ताकि वह पहली सूची में अपना नाम दर्ज करा सके। “किराया मुक्ति दिवस” किरायेदार से मकान मालिक बनने का एक उत्सव है।
किरायेदार होना कोई अपराध नहीं है। लेकिन समाज का रवैया कई बार ऐसा होता है जैसे किरायेदार होना कोई कमजोरी हो। किरायदार को कमजोर “क्रेडिट स्कोर” वाला व्यक्ति माना जाता है। मैंने स्वयं ऐसा महसूस किया है। कई बार मकान मालिक के आदेशों को बेगारी की तरह मनाने को मजबूर होना पड़ा, मानसिक तनाव में रहना पड़ा, सिर्फ इसलिए कि मैं किसी और की छत के नीचे था।
आज, मैं गर्व से कह सकता हूँ कि अब मेरे पास अपना मकान है। यह न् केवल मेरी आत्मनिर्भरता, सम्मान और संघर्षों की जीत का प्रतीक है बल्कि आत्म-संतोष की छाया भी है।
किरायेदार होना पूरी तरह से बुरा नहीं है। इसके भी कुछ लाभ हैं: –
- वार्षिक रखरखाव की चिंता नहीं।
- चन्दा मंगनेवाले भी कुछ – कुछ रहम करते है।
- जो किराया देकर आज़ाद हैं।
- घर में सीलन? नल टपक रहा है? पेंट उतर गया?
कोई बात नहीं! फोन उठाइए और मकान मालिक को फ़रमान सुनाइए:
दीवार गीली है, फफूंदी आ रही है। जवाब मिलेगा: “अरे ठीक करवा देंगे… अगले महीने।” आपका काम सिर्फ शिकायत करना है, मरम्मत की फ़िक्र तो मालिक की! - जब कॉलोनी वाले आकर कहें “भाई साहब, मंदिर निर्माण में सहयोग दीजिए…” तो मुस्कराते हुए कहिए, “हम तो किरायेदार हैं जी!” फौरन जवाब मिलेगा: “अरे कोई बात नहीं, रहने दीजिए।”
- लेकिन मालिक होना दीर्घकालिक सुरक्षा और मानसिक स्थिरता प्रदान करता है। मकान का मालिक होना एक प्रकार की आजादी है, अपने नियमों पर जीने की स्वतंत्रता।
यदि आप आज किरायेदार हैं, तो घबराएं नहीं।
योजना बनाएं, धैर्य रखें, और विश्वास बनाए रखें।
एक दिन आपके जीवन में भी “किराया मुक्ति दिवस” आएगा।
✍ दिलीप कुमार
अधिवक्ता
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