“कैमरे के फ़्लैश में धुंधले होते वैवाहिक संस्कार”
भारत में विवाह केवल दो व्यक्तियों का मिलन नहीं होता, बल्कि यह दो परिवारों का पवित्र और धार्मिक संयोग होता है। यह एक सांस्कृतिक और धार्मिक संस्कार है, जिसमें विभिन्न रीति-रिवाज, परंपराएँ और भावनाएँ गहराई से जुड़ी होती हैं। लेकिन आधुनिक समय में विवाह समारोहों में फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी का बढ़ता हस्तक्षेप इस पवित्र संस्कार की गरिमा को प्रभावित कर रहा है और कई बार यह धार्मिक अनुष्ठानों में व्यवधान का कारण भी बन रहा है।
विवाह के मंडप में जब पंडित जी मंत्रोच्चार कर रहे होते हैं, तब कैमरों की तेज़ रोशनी, ड्रोन की गूंज और फोटोग्राफरों के लगातार निर्देश उस पवित्र वातावरण को भंग कर देते हैं। वर और वधू की पूजा-अर्चना के दौरान, जब वे भगवान के सामने नत होते हैं, तब फोटोग्राफर उन्हें बार-बार “फिर से देखिए”, “मुस्कराइए”, “दाईं ओर मुड़िए” जैसे निर्देश देते हैं, जिससे पूरे वातावरण में कृत्रिमता का अहसास होने लगता है। यह न केवल असहज होता है, बल्कि धार्मिक दृष्टिकोण से यह अनुचित भी है।
कई बार ऐसा भी देखा गया है कि फोटोग्राफर “अच्छे शॉट” के चक्कर में पंडित को अनुष्ठान को रोकने के लिए कह देते हैं या क्रियाएँ पुनः दोहराने का अनुरोध करते हैं। कुछ फोटोग्राफर तो विवाह की अग्नि के चारों ओर घूमते रहते हैं, जिससे न केवल रीति-रिवाजों में व्यवधान उत्पन्न होता है, बल्कि संपूर्ण वातावरण कृत्रिम और उबाऊ बन जाता है।
यह कहना उचित नहीं होगा कि फोटोग्राफी पूरी तरह से अनुचित है। किसी भी समारोह की यादों को संजोना और सुरक्षित रखना प्रत्येक व्यक्ति का अधिकार है, और तकनीकी दृष्टि से यह कार्य पहले से कहीं अधिक सुविधाजनक और आकर्षक हो गया है। तथापि, इसका प्रयोग विवेकपूर्ण और संतुलित ढंग से होना चाहिए। वर और वधू को यह समझना आवश्यक है कि फोटोग्राफर के लिए क्या सीमाएँ निर्धारित की जानी चाहिए, और फोटोग्राफरों को भी यह समझना चाहिए कि वे एक धार्मिक अनुष्ठान के हिस्से के रूप में उपस्थित हैं, न कि किसी फिल्म की शूटिंग के लिए।
एक व्यक्तिगत अनुभव के माध्यम से इस विषय की गंभीरता को और अधिक स्पष्ट किया जा सकता है। 20 अप्रैल 2025 को एक विवाह समारोह में भाग लेने का अवसर प्राप्त हुआ। उस दिन वरमाला का कार्यक्रम था, लेकिन अत्यधिक तेज़ DJ संगीत ने पूरे मंडप का वातावरण असहज बना दिया। स्टेज पर वधू के परिजनों के अतिरिक्त फोटोग्राफरों ने भी मंच को घेर रखा था। वर पहले से मंच पर उपस्थित था और सभी बाराती विवाह की रस्म के लिए उत्सुक थे। वधू मंच से केवल 50 मीटर की दूरी पर थी, और फोटोग्राफरों के कार्य ने उस दूरी को तय करने में 45 मिनट से अधिक का समय लगा दिया। इस कारण संपूर्ण वातावरण उबाऊ और असहज हो गया। अंततः वरमाला का कार्यक्रम संपन्न हुआ, किंतु समारोह के अन्य पहलुओं में असुविधा उत्पन्न हो गई।
फोटोग्राफरों के चक्कर में रात के लगभग 02 बजे तक शादी का कार्यक्रम प्रारंभ भी नहीं हो सका था। रात के दो बजे शादी प्रारंभ होने से पूर्व पंडित जी दक्षिणा की मांग करने आए। उन्होंने ₹5000 से शुरुआत की और अंत में ₹2100 पर सहमत हो गए। जब फोटोग्राफर से शुल्क के बारे में पूछा गया तो पता चला कि उसने एक रात के ₹35,000 लिए थे। इस पर यह सवाल उठता है कि एक ओर पवित्र अनुष्ठान कराने वाले पंडित को ₹2100 और दूसरी ओर गुटखा खाते हुए फोटोग्राफर को ₹35,000? यह एक चिंतनीय विरोधाभास है।
विवाह संस्कार की पवित्रता और गरिमा बनाए रखना हम सभी की सामूहिक जिम्मेदारी है। यह समय की आवश्यकता है कि हम तकनीकी प्रगति का उपयोग विवेकपूर्ण और मर्यादित रूप से करें, ताकि इस पवित्र अवसर की धार्मिक और सांस्कृतिक महत्ता सुरक्षित बनी रहे।
दिलीप कुमार
अधिवक्ता
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