असफल शिक्षा व्यवस्था ही एक सफल अपराधी को तैयार करता है तथा समाज को पुलिस की आवश्यकता महसूस कराती है। हमारे समाज में शिक्षा व्यवस्था दो रूपों में संचालित होती हैं। पहला जब व्यक्ति जन्म लेता है उसी वक्त से माता पिता एवं परिवार के लोगों द्वारा नैतिक एवं सामाजिक शिक्षा की प्रक्रिया प्रारंभ हो जाती थी।
वहीं दूसरी गुरुकुल की शिक्षा या यूं कहे तो विद्यालय की शिक्षा अक्षर एवं शब्द ज्ञान के साथ प्रारंभ हो जाती है। नैतिक एवं सामाजिक शिक्षा का विश्वविद्यालय परिवार होता था। जिसमें माता-पिता, दादा-दादी, नाना-नानी, भाई-बहन एवं अन्य रिश्तेदार नातेदार शिक्षक की भूमिका में होते थे तथा घर के बुजुर्ग इस विद्यालय के मुख्य प्रशासक होते थे। परिवार रूपी विश्वविद्यालय से प्राप्त नैतिक एवं सामाजिक शिक्षा व्यक्ति के जीवन में काफी असरदार होता था।
बदलते परिवेश में पारिवारिक प्रशासन कमजोर होता गया। परिवार विखंडित होकर संयुक्त परिवार से एकल परिवार में परिवर्तित हो गया। नैतिक नियम कानून कमजोर होते गए। परिवार रूपी विद्यालय का प्रत्येक शिक्षक घर में सरस्वती के स्वरूप की स्थापना के जगह लक्ष्मी के स्वरूप की पूजा में लग गए। इसका दुष्परिणाम लिखित एवं सरकार द्वारा संचालित कानून हावी होता गया। सरकार द्वारा संचालित विद्यालय गांव-गांव में खोले जाने लगे। बड़े पैमाने पर शिक्षकों की नियुक्ति होने लगी। शिक्षक भी अपने नैतिक एवं सामाजिक जवाबदेही को भूलकर सिर्फ कानूनी जवाबदेही पूरा करने में महारत हासिल करने लगे। बच्चों के अंदर ज्ञान के प्रवेश का मूल्यांकन बच्चों के व्यक्तित्व की जगह उसके कॉपियों में तलाशी जाने लगी। इसका परिणाम बच्चों के व्यक्तित्व पर स्पष्ट दिखने लगा। बच्चे शाब्दिक एवं किताबी ज्ञान में महारत हासिल होने लगे। ज्ञान द्वारा संचालित अपराध बढ़ने लगा। जिसका प्रत्यक्ष उदाहरण साइबर क्राइम है। नैतिक सामाजिक एवं अनुशासनिक ज्ञान का अभाव दिखने लगा।
*पुलिसिया तंत्र से समाज को सुधारने की कवायत*
परिणाम स्वरूप सरकार पुलिसिया तंत्र की मजबूती पर ध्यान देने लगी। प्रति व्यक्ति पुलिस का अनुपात अमेरिका, इंग्लैंड एवं विश्व के अन्य देशों के अनुपात में तुलनात्मक अध्ययन होने लगा। प्रति व्यक्ति पुलिस का अनुपात बढ़ाने पर सरकार अपना ध्यान देना नई-नई शाखा (साइबर क्राइम शाखा, आर्थिक अपराध शाखा, मध्य निषेध शाखा, सूचना टेक्नोलॉजी शाखा, महिला अपराध शाखा, बाल अपराध शाखा एवं गुंडा एवं रंगदारी शाखा) शुरू कर दी। पति – पत्नी के बीच बिस्तर तक की शिकायतें भी पुलिस के पास आनी शुरू हो गई है। कानून की किताबें मोटी हो गई, पुलिस की संख्या भी बढ़ा दी गई है। पुलिस वाले भी जेल जाने लगे हैं।
कारण यह है कि शिक्षा व्यवस्था पूर्णता असफल साबित होने लगा। व्यक्ति ज्ञान की जगह धन अर्जित करने के में लग गया। सरकार भी ज्ञान की जगह धन बांटने में लग गई। विद्यालय में भी ज्ञान की जगह पैसा बाटे जाने लगा। शिक्षकों को भी ज्ञान बांटने की जगह धन बांटने में लगा दिया गया। जो शिक्षक व्यक्ति के जीवन भर के भुख मिटाने का तरीका सिखाते थे उन्हें सिर्फ दिन के एक समय का भूख मिटाने में लगा दिया गया।
आवश्यकता है समाज के हर एक व्यक्ति को शिक्षक की भूमिका में आने की, परिवार में व्यक्ति के मान सम्मान बढ़ाने की, गुरुकुल की शिक्षा के अच्छे पहलुओं को वर्तमान शिक्षा व्यवस्था में समावेश कराने की। किताबी शिक्षा के साथ-साथ नैतिक शिक्षा को बढ़ावा देने की। वर्तमान में किताबी ज्ञान बांटने वाली शिक्षण संस्थाएं बंद है। तो हम सब मिलकर नैतिक एवं सामाजिक ज्ञान बांटने वाली संस्था परिवार का जमकर लाभ ले।
(️*सर्वजीत कुमार*)
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