दुनिया के किसी भी देश में व्यक्ति को असीम स्वतंत्रता नहीं दी गई है। प्रत्येक देश अपने नागरिक की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगा सकता है। भारत में यह सिद्धांत है कि संसद में जनता के प्रतिनिधि यह अवधारित करेंगें कि कहाँ तक व्यक्ति के अधिकार जायेंगे और कहाँ तक उन्हें सामूहिक हित में या राज्य के सुरक्षा के हित में, या समय की आवश्यकताओं के अनुसार मर्यादित किया जायेगा। किसी व्यक्ति के शारीरिक स्वतंत्रता पर प्रतिबंध सामान्यतः दो रूपों में सामने आता है:-
- प्रथम: – गिरफ़्तारी
- दूसरा: – अभिरक्षा
गिरफ़्तारी का अर्थ है किसी व्यक्ति को किसी अपराध के सिलसिले में पकड़ा जाना और अभिरक्षा का अर्थ है अच्छी तरह से की जानेवाली रक्षा ताकि समय पर अभियुक्त की न्यायालय में उपस्थिति सुनिश्चित हो सके और न्यायिक कार्य (Trial) अभियुक्त की अनुपस्थिति के कारण प्रभावित न हो सके।
उपरोक्त दोनों शब्दों के शाब्दिक अर्थ की दृष्टि से सोचने पर यह कहाँ जा सकता है कि जब किसी व्यक्ति को किसी अपराध के सिलसिले में पकड़ा गया हो तो यह यह पकड़ना गिरफ़्तारी है और जिसने पकड़ा है, उसकी यह जवाबदेही है कि गिरफ्तार किए गये व्यक्ति की अच्छी तरह से रक्षा करें, रक्षा का यह कार्य/दायित्व “अभिरक्षा” कहलाता है।
गिरफ़्तारी पहले होती है और अभिरक्षा बाद में।
गिरफ़्तारी पहले होती है और अभिरक्षा बाद में लेकिन यह जरूरी नहीं है कि हिरासत के प्रत्येक मामले में पहले गिरफ्तारी हो। उदाहरण के तौर पर, जब कोई व्यक्ति अदालत के समक्ष आत्मसमर्पण करता है तो वह हिरासत में होता है, इस मामले में गिरफ्तारी नहीं होती है।
कानूनी दृष्टिकोण: –
गिरफ़्तारी से तात्पर्य किसी व्यक्ति को इस प्रकार पकड़ना है, जिससे उसे उसके द्वारा किए गये अपराध के लिए जवाबदेह बनाया जा सके। गिरफ़्तारी की वैधता के लिए यह परम आवश्यक है कि वह विधि द्वारा निर्धारित मापदंडों के अनुसार हो। गिरफ़्तारी का मूल उधेश्य गिरफ़्तार किए गये व्यक्ति को उसके विधिक दायित्व के पालन करने के लिए अवरुद्ध करना हैं। यहाँ यह बात अतिमहत्वपूर्ण हैं कि जब आरोपी स्वयं अपने आप को न्यायालय में या पुलिस के पास समर्पण कर देता हैं तो उसे गिरफ़्तारी नही कही जा सकती हैं। गिरफ़्तारी के लिए आवश्यक हैं कि आरोपी के शरीर को उसके इच्छा के विरुद्ध भौतिक रूप से छूकर अवरुद्ध करना अथवा कब्जा मे करना हैं ताकि उसे न्यायालय मे प्रस्तुत किया जा सके। गिरफ़्तारी करते समय गिरफ़्तार किए जाने वाले व्यक्ति के विरुद्ध निश्चित आरोप होना चाहिए। बिना निश्चित आरोप के की गई गिरफ़्तारी अवैधानिक होती हैं। डॉ. रिनी झोंहर बनाम स्टेट ऑफ एमपी के प्रकरण मे उच्चतम न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया कि अन्वेषण अधिकारी को किसी अभियुक्त को गिरफ़्तार करने से पूर्व अपने आप से प्रश्न करना चाहिए कि क्या अभियुक्त की गिरफ़्तारी निम्नलिखित उद्देश्य के लिए जरूरी है: –
- अन्य अपराध को घटित होंने से रोकने के लिए।
- उचित अनुसंधान हेतु।
- अपराध के साक्ष्य को नष्ट करने से रोकने हेतु।
- साक्ष्य को छेरछार से रोकने हेतु।
- साक्षी को प्रभावित करने, धमकी देने से रोकने हेतु।
- अभियुक्त के गिरफ़्तारी के बिना न्यायालय मे उसकी उपस्थिति सुनिश्चित नही कि जा सकती।
In the matter of Union of India Versus Padam Narain the Hon’ble Supreme Court of India defined arrest as – Arrest may be defined as “the execution of the command of a court of law or of a duly authorized officer”. Arrest is an especially important process in the code. It ensures presence of the accused at the trial.
अभिरक्षा का मूल उद्देश्य:-
अभिरक्षा का मूल उद्देश्य इस प्रकार अभियुक्त की रक्षा करना है ताकि समय पर अभियुक्त की न्यायालय में उपस्थिति सुनिश्चित हो सके और न्यायिक कार्य (Trial) अभियुक्त की अनुपस्थिति के कारण प्रभावित न हो सके।