समूची दुनिया कोरोना की चपेट में आ गया है। लाखों की जान जा चुकी है, लाखों बेरोजगार हो गये और करोड़ों पर रोजी-रोटी की समस्या मॅडरानें लगा है। लगभग 04 महीने से न्यायालय भी एक तरह से बंद पड़े है, जिससे अधिवक्ताओं के समक्ष भी गंभीर आर्थिक संकट उत्पन्न हो गई है। दूसरी ओर मुकदमा के बोझ से दबी हुई न्यायालय को कोरोना वायरस और दबाते चली जा रही है। कोरोना का कोई इलाज नहीं होने के कारण दिनांक 13/07/2020 को माननीय पटना उच्च न्यायालय द्वारा सम्पूर्ण बिहार के निचली न्यायालय को Shut-Down Mode में डालने के लिए मजबूर होना पड़ा। Shut-Down Mode समय की मांग हैं, परंतु समस्या का निदान नही हैं। लाखों- लाख मुकदमों के बोझ से दबी न्यायपालिका को मुकदमे के निबटाने के लिए एक ठोस रणनीति बनानी होगी। इसमे देर होने पर मुकदमा का बोझ मवाद के रूप मे सम्पूर्ण न्यायिक व्यवस्था पर फैल सकती हैं, जो न्यायपालिका के लिए अशुभ होगा। बिहार के लगभग प्रत्येक जिले में 40-50 (यदि Tribunal, Revenue Court और Executive Magistrate को सम्मिलित कर लिया जाये तो संख्या अधिक भी हो सकती है) न्यायिक अधिकारी है। प्रत्येक न्यायालय का लंच के बाद का लगभग 01 घंटा समय “मूव मैटर” को सुनने में खर्च हो जाता है। इस प्रकार हम यह कह सकते है कि प्रत्येक दिन न्यायालय का लगभग 1600-2000 घंटा समय “मूव मैटर” की सुनवाई में ही खर्च हो जाता है। मूव मैटर बहुत छोटा-छोटा मैटर होता है, जिसमें अधिकांश मामला न्यायालय द्वारा पारित आदेश का उसी न्यायालय के कार्यालय या संबंधित थाना द्वारा क्रियान्वयन से संबंधित होता है। इस तरह के मामलें में विधि का कोई प्रश्न अंतर्ग्रस्त नहीं होता है। न्यायालय द्वारा अपने कार्यालय सहायक को कठोर निर्देश देने मात्र से इसका निराकरण हो सकता है और प्रत्येक दिन न्यायालय का लगभग 1600-2000 घंटा का समय नियमित वाद की सुनवाई के लिए बचाया जा सकता है।
दूसरी महत्वपूर्ण तथ्य जमानत से जुड़ा है। जमानत दो प्रकार का होता है। एक गिरफ़्तारी से पूर्व और दूसरा गिरफ़्तारी के बाद। जिसका प्रावधान दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 438 और 439 में है। दोनों धारा स्पष्ट करती है कि जमानत के मामलें में सेशन न्यायालय और उच्च न्यायालय को बराबर का अधिकार है। यानि जिस मामलें मे उच्च न्यायालय द्वारा जमानत दिया जा सकता है उस मामलें में सेशन न्यायालय द्वारा भी जमानत दिया जा सकता है। पटना उच्च न्यायालय में लगभग 40 न्यायमूर्ति है जिनका अधिकांश समय जमानत संबंधी आवेदन की सुनवाई में ही खर्च हो जाता है। यदि हत्या, बलात्कार, डकैती जैसे गंभीर मामलें को छोड़कर शेष मामलें में जमानत का अंतिम न्यायालय सेशन न्यायालय ही हो, तो उच्च न्यायालय का महत्वपूर्ण समय बचाया जा सकता है और उस समय का उपयोग माननीय न्यायालय द्वारा Appeal, Revision, Constitution Matters तथा जनहित से जुड़े वाद की सुनवाई में किया जा सकता है।
इसके आलवे यदि सभी प्रकार के पारिवारिक विवाद, संपत्ति-संबंधी विवाद और सुलहनीय आपराधिक विवाद में, वाद प्रस्तुत करने से पूर्व अनुभवी व्यक्तियों द्वारा दोनों पक्षों की कॉनसेलिंग की जाये तो उसमें से बहुत से मामलें को न्यायालय में प्रस्तुत करने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी और न्यायालय का समय नियमित वाद की सुनवायी हेतु बचाया जा सकता है।
✍डिस्प्यूट-ईटर
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