यह कहानी जुगनूँ, ज्योति और राम पदारथ (काल्पनिक नाम) के बीच की है। राम पदारथ, ज्योति के पिता है। ज्योति जब 03 वर्ष की थी तो उससे उसकी माँ का साथ छूट गया था। राम पदारथ को दूसरा कोई संतान नहीं था, वह मेहनत मजदूरी करके अपनी बेटी का पालन-पोषण किया था। बेटी जब बड़ी हुई तो वह अपनी बेटी की शादी किसी अच्छे लड़के से करना चाहता था। ज्योति की शादी के लिए वह दर्जनों लड़के वाले के पास गए थे परंतु लड़का उनको पसंद ही नहीं आता था। अंततः जुगनूँ, जो बैंक में अधिकारी है, से अपनी बेटी की शादी तय किया। शादी के 10 दिन के अंदर अचानक जुगनूँ ससुराल पहुंचा। जुगनूँ के साथ ज्योति भी थी। ज्योति को इस बात का अंदाजा था कि उसके पिता पसीने से तरबतर हो सकते है, जिसको देखकर जुगनूँ गलत प्रतिक्रिया भी दे सकता है। वैसा ही हुआ जैसा कि ज्योति सोंच रही थी। पसीने से तर-बतर राम पदारथ को देखकर जुगनूँ पहले तो राम पदारथ के पास जाने से परहेज कर रहा था, परंतु कुछ देर बाद संकोच के साथ वह अपने ससुर के पास गया और उनको प्रणाम किया। फिर ज्योति से बोला :-
जुगनूँ :- तुम्हारा बाप अनपढ़, देहाती और गवार है।
ज्योति :- (सरल शब्दों में) तभी तो दर्जनों को नापसंद करके आपको पसंद किया है।
अपनी पत्नी का उत्तर उसे निरुत्तर कर दिया था। जुगनूँ को अपने सवाल का माकूल उत्तर मिल चुका था, उसे अपनी गलती का अहसास भी हो रहा था। जुगनूँ का उपरोक्त कथन विवाद पैदा कर सकता था, परंतु ज्योति की बुद्धिमानी नें संबंध को खराब होने से बचा लिया। आज जुगनू और ज्योति की शादी के सात वर्ष से अधिक हो चुके है, उस घटना को ज्योति और जुगनूँ आज तक नहीं भूलें है और भूल भी नहीं सकते है, क्योंकि वही घटना उसकी जिंदगी में विवाद के प्रवेश को रोक दिया था। आखिर ज्योति के पिता किसान जो ठहरे।
(अच्छे कपड़े में ही अच्छी सोंच हो यह जरूरी नहीं है)।
✍️ डिस्प्यूट-ईटर
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