86 वर्ष का वृद्ध अपनी जिंदगी की गाड़ी किसी-किसी प्रकार से खींच रहा है. लगभग 03 वर्ष पहले पत्नी का साथ छुट जाने से वह पुर्णतः लाचार हो गया है और प्रत्येक दिन सुबह से शाम तक यमराज के आने का इंतजार कर रहा है ताकि वे अपनी पत्नी के पास चले जाये और अकेलापन दूर हो सके, परन्तु यमराज यह भूल गए है कि कोई बेसबरी से उनका इंतजार कर रहा है या फिर यमराज भी कठोर परीक्षा ले रहे है. ख़ुशी की बात है कि वृद्ध का वंशबृक्ष फलदार है यानि बेटा-बेटी, पोता-पोती, नाती-नतनी नामक सभी फल लगे हुए है. सभी के सभी पढे-लिखे, कामकाजी और आर्थिक रूप से संपन्न भी है. परन्तु दुःख की बात है कि वे सभी इतने व्यस्त है कि उन्हें अपनी जड़ में झाकने की फूर्सत ही नहीं है. एक विधवा दाई दोनों शाम खाना बनाकर और ढक कर रख देती है जिससे वृध की भोजन की समस्या का समाधान हो जाया करता है परन्तु चाय उनको खुद बनाना पड़ता है. अब उनकी उम्र उनको बिस्तर पर पड़े रहने के लिए मजबूर कर रहा है. परिवार के सदस्यों का साथ में नहीं रहने के कारण उनके धैर्य का बांध अब टूटता जा रहा है. उनकी अंतिम ईच्छा अस्पताल में भर्ती होने की है ताकि वे शांति से मर सके. आखिर नयी पीढ़ी की सोच कहाँ जा रही है? कैसी है मेरी शिक्षा व्यवस्था? और अंततः हम कहाँ जा रहे है? हम कहाँ जा रहे है? बुढा तो कल्ह सबको होना ही है.
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