जब मैं विधि के प्रथम वर्ष का छात्र था, तब मुझे भारतीय संविधान का अनुच्छेद 144 पढ़ने और समझने का अवसर मिला। अनुच्छेद 144 के अनुसार, राज्यक्षेत्र के भीतर सभी सिविल और न्यायिक प्राधिकारी उच्चतम न्यायालय की सहायता में कार्य करते हैं। मुझे बताया गया कि वाद का निबटारा भारत के सर्वोच्च न्यायालय की जिम्मेदारी है, और विवाद निबटाने में लगे समस्त अधिकारी सर्वोच्च न्यायालय की सहायता में कार्य करते हैं। मैंने निश्चय किया कि मैं भी न्यायिक अधिकारी बनकर सर्वोच्च न्यायालय की सहायता करूंगा।
वकालत पास करने के बाद जब मैं वकील के रूप में न्यायालय पहुँचा, तो मैंने देखा कि मुकदमों का निबटारा करने में काफी समय लग रहा था। न्यायालय में अभिलेख रखने का तरीका भी अस्त-व्यस्त था। यह सब देखकर मेरे मन में विचार आया कि यदि मैं न्यायाधीश बनूँगा, तो जल्दी से जल्दी मुकदमा का निबटारा करूंगा और अपने दफ्तर को भी व्यवस्थित रखूँगा। मैंने काफी प्रयास किए, लेकिन मैं न्यायाधीश की कुर्सी तक नहीं पहुँच सका।
मैंने वकील के रूप में अनुभव किया कि न्यायालय में लोग (वादी/पतिवादी) कानून को हथियार, न्यायालय को रणक्षेत्र और वकील को वजीर के रूप में इस्तेमाल कर अपनी महत्वकांक्षा की पूर्ति करना चाहते हैं। बहुतेरे विवाद न्याय पाने की जगह एक-दूसरे को थकाने के लिए किए जा रहे हैं, और इस थकाने के पीछे समाज में या तो अपनी दबदबा स्थापित करना या नाजायज लाभ प्राप्त करना होता है।
वर्ष 2017 में एक दम्पत्ति मेरे पास आए, जिन्होंने तलाक के वाद दायर करने का अनुरोध किया। जब मैंने कारण पूछा, तो पत्नी ने बताया कि पति काफी गुस्सा करते हैं, कई-कई दिनों तक खाना नहीं खाते और बातचीत बंद कर देते हैं। पति का आरोप था कि आमदनी कम होने से विवाद होता है। जब मैंने दोनों की काउंसलिंग की, तो वे दोनों एक साथ रहने के लिए राजी हो गए और तलाक की अर्जी दाखिल करने का इरादा त्याग दिया। उसी समय मैंने न्यायाधीश बनने का विचार त्याग दिया और यह निश्चय किया कि विवाद के त्वरित और वैकल्पिक निबटारे के उद्देश्य से एक संस्था बनाई जाए, ताकि अधिक से अधिक लोगों की समस्याओं का निदान किया जा सके। इस प्रकार, न्यायाधीश की कुर्सी तक पहुंचे बिना भी समाज की बेहतर सेवा की जा सकती है और मुकदमों के निबटारे में सर्वोच्च न्यायालय की बेहतर सहायता भी की जा सकती है।
इसके बाद मैंने अपने पिताजी के नाम से “राम यतन शर्मा मेमोरियल ट्रस्ट” की स्थापना की और “डिस्प्यूट-ईटर” नाम से पहल प्रारंभ किया जिसका संचालन राम यतन शर्मा मेमोरियल ट्रस्ट द्वारा किया जाता है। मेरे समझ से यह ट्रस्ट भारत का पहला ऐसा ट्रस्ट है, जिसका उद्देश्य न्यायालयों से मुकदमे के बोझ को कम करना है। “डिस्प्यूट-ईटर” का मूल मंत्र है “समझौता कराओ, परिवार बचाओ, न्यायालय से मुकदमे का बोझ घटाओ।”
“डिस्प्यूट-ईटर” समाज को यह संदेश देना चाहता है कि न्यायालय से मुकदमे का बोझ कम करना प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है, और हर एक नागरिक को इसे चुनौती के रूप में स्वीकार करना चाहिए। यह संस्था पारिवारिक वाद, संपत्ति संबंधी वाद और सुलहनीय आपराधिक वाद को न्यायालय से बाहर समझौता द्वारा समाप्त करने का प्रयास करती है। जैसे ही कोई मामला “डिस्प्यूट-ईटर” के संज्ञान में आता है, वह दूसरे पक्ष से संपर्क साधने का प्रयास करती है।
आरंभ में, “डिस्प्यूट-ईटर” पक्षकारों को नोटिस भेजकर बुलाने की कोशिश करती थी, लेकिन उसमें सफलता नहीं मिली। फिर, फोन द्वारा बुलाने की कोशिश की गई, लेकिन वहाँ भी सफलता नहीं मिली। अंततः, “डिस्प्यूट-ईटर” वर्तमान में किसी विवाद को समाप्त करने के लिए ऐसे व्यक्ति की तलाश करती है, जिसका दूसरे पक्ष से अच्छा संबंध हो, और उनके माध्यम से दूसरे पक्ष तक पहुँचने का प्रयास करती है। इसके बाद दोनों पक्षों की काउंसलिंग की जाती है और निष्पक्षता के साथ उनके विवाद से जुड़े कानूनी पहलुओं को बताया जाता है। इस प्रकार, दोनों पक्षों को समझौते के लिए तैयार किया जाता है।
“डिस्प्यूट-ईटर” द्वारा प्रत्येक सफल समझौते को पूर्ण-विराम (Full Stop) के रूप में अपने वेबसाईट https://disputeeater.in पर प्रकाशित किया जाता है। जहाँ न्यायिक निर्णय को “judgment” या “order” कहा जाता है, वहीं “डिस्प्यूट-ईटर” द्वारा किए गए सफल समझौते को “पूर्ण-विराम” कहा जाता है। पूर्ण-विराम विवाद के औपचारिक समाप्ति का प्रतीक है। “डिस्प्यूट-ईटर” ने अब तक कुल 101 विवादों को पूर्ण-विराम तक पहुँचाने में सफलता हासिल की है। इसका लक्ष्य माह में कम से कम 02 वादों को पूर्ण-विराम तक पहुँचाना है।
इसकी एक विशेषता यह है कि यदि प्रयास असफल हो जाता है, तो उसका दोष किसी पक्षकार पर न डालकर स्वयं पर लिया जाता है, जिससे भविष्य में पक्षकारों के बीच समझौता होने की संभावना बनी रहती है। एक और महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि यह सेवा पूर्णतः निःशुल्क है।
प्रत्येक पूर्ण-विराम को निर्धारित प्रक्रिया के तहत न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है, और वहाँ भी मुकदमा समाप्त कराकर विवाद को पूर्ण रूप से खत्म करने का प्रयास किया जाता है। प्रारंभ में कुछ परेशानी हुई, परंतु अब तो न्यायिक निर्णय में भी “डिस्प्यूट-ईटर” के नाम का उल्लेख किया जाने लगा है। इतना ही नही यह संस्था जरूरतमंद व्यक्तियों को निःशुल्क अधिवक्ता भी उपलब्ध करवाती है। यह सेवा वर्तमान में केवल मुजफ्फरपुर शहर तक सीमित है, लेकिन संस्था गंभीरता से इस सेवा का विस्तार मुजफ्फरपुर से बाहर करने पर विचार कर रही है।
✍ डिस्प्यूट ईटर
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