कल रविवार को मेरे पास एक क्लाइंट आए। वे काफी सीधा-साधा और अति सामान्य व्यक्ति थे। वे एक समस्या के समाधान के लिए मेरे पास आए थे। उनकी समस्या यह थी कि उनके पड़ोसी ने उनकी जमीन पर अवैध कब्जा कर लिया है और उसे खाली नहीं कर रहा है। मैंने उनसे उस व्यक्ति से नाम पूछा, तो उन्होंने अपना नाम xxxxx पासवान बताया।
फिर मैंने उस व्यक्ति का नाम नाम पूछा जिसने अवैध कब्जा कर रखा है, तो उन्होंने उसका नाम xxxxx पासवान बताया। जब मैंने पूछा कि आप कब्जा क्यों नहीं ले सकते, तो उनका सीधा जवाब था, “वह पाँच भाई हैं, और सभी मिलकर झगड़ा करने लगते हैं, जिससे हम लोग कमजोर पर जाते हैं।”
वे बोलते हुए आगे कहने लगे, “सर, यदि वह भूमिहार होता (भूमिहार से उनका तात्पर्य समस्त अगरी जाति से था), तब हम कब्जा जरूर ले लेते।
मैंने फिर से पूछा कि भूमिहार से कब्जा कैसे ले लेते? तब उनका जवाब था, “अगर कोई भूमिहार से झगड़ा होता है, तो दूसरे भूमिहार उस झगड़े में हस्तक्षेप नहीं करता है और उसको हरिजन कानून का भय भी रहता है।”
हरिजन कानून, जिसे औपचारिक रूप से अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के नाम से जाना जाता है, भारतीय संविधान द्वारा अनुसूचित जातियों और जनजातियों के अधिकारों की रक्षा के लिए लागू किया गया है। इस कानून का उद्देश्य इन समुदायों को सामाजिक भेदभाव और अत्याचार से बचाना है और उनके अधिकारों की सुरक्षा करना है न कि गैर न्यायिक समाधान खोजना।
इस प्रकार, गैर-न्यायिक समाधान में भी हरिजन कानून बढ़ती भूमिका निभाता है, जिससे समाज में एक वर्ग लाभ की स्थिति में रहता है और दूसरे वर्ग को अपने आप को अवर्ग की श्रेणी में रखकर नाराजगी और अपने नेताओं तथा कानून निर्माताओं के साथ-साथ उसके व्याख्याकर्ता को दोषी ठहराने या कोसने पर मजबूर होना पड़ता है।
✍🏿 दिलीप कुमार
अधिवक्ता
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