किरायेदार के अधिकार।
किरायेदार का 09 महत्वपूर्ण अधिकार, जिसे प्रत्येक किरायेदार को जानना चाहिए।
किरायेदारी की प्रारंभ मकान के मालिक और किरायेदार के बीच आपसी सहमति/करार से प्रारंभ होती है और उसी करार से नियंत्रित होती है। शर्त केवल इतना ही है कि करार विधि-विरुद्ध और अनैतिक नहीं होनी चाहिए।
बिहार मकान (पट्टा, किराया और बेदखली) नियंत्रण अधिनियम 1982 के अनुसार किरायेदार को 09 महत्वपूर्ण अधिकार, जिसे प्रत्येक किरायेदार को जानना चाहिए।
- पगड़ी/सलामी के विरुद्ध अधिकार: – पगड़ी एक ऐसी राशि होती है, जिसे मकान के मालिक, किरायेदार से किरायेदारी प्रारंभ होने के पूर्व जमा करवाती है। धारा 03 के अनुसार मकान के मालिक अधिक-से-अधिक एक महीने की किराया की राशि के बराबर पगड़ी ले सकता है। उससे अधिक की राशि पगड़ी के रूप में लेना अपराध की श्रेणी में आता है, जिसमें मकान के मालिक को एक वर्ष तक की सजा, जुर्माना या दोनों हो सकता है। {धारा 28(2)}.
- उपयोग और उपभोग करने का अधिकार:- किरायेदार को कब्जाधीन मकान के संदर्भ में वह तमाम अधिकार प्राप्त है जो मकान के मालिक को प्राप्त है। यानि कब्जाधीन मकान यदि मकान के मालिक के खुद के दखल-कब्जा में होती तो जिस प्रकार मकान के मालिक उसका इस्तेमाल करता, किरायेदार भी उसका उपयोग उसी प्रकार कर सकता है।
- भुगतान किए गए किराया का रसीद प्राप्त करने का अधिकार: – प्रत्येक किरायेदार को भुगतान किए गए किराया का रसीद प्राप्त करने का हक है। यदि मकान के मालिक रसीद देने में चूक करता है तो कानून किरायेदार को तीन माह के भीतर शिकायत दर्ज करने का अधिकार देती है और शिकायत सही पाए जाने पर मकान के मालिक को दुगुनी राशि तक का जुर्माना हो सकता है (धारा 20)।
- निजता का अधिकार: – किरायेदारी के दौरान किरायेदार को निजता का पूरा हक है, उस हक में मकान के मालिक को दखल देने का कोई हक नहीं है। मकान के मालिक किरायेदार की अनुमति के बिना किराया की संपत्ति पर प्रवेश भी नहीं कर सकता है।
- घर मरम्मत से संबंधी अधिकार : – घर की वार्षिक चुना-पोताई इत्यादि करवाने का दायित्व मकान के मालिक पर है। यदि मकान के मालिक उसमें चूक करता है तो किरायेदार खुद खर्च करेगा और मकान के मालिक को खर्च की सूचना देगा। यह खर्च किसी भी कीमत पर एक माह के कराया की राशि से अधिक की नहीं होगी। और यदि मकान के मालिक द्वारा उसका भुगतान नहीं किया जाता है तब मासिक किराया से उक्त राशि किरायेदार द्वारा काट ली जायेगी। (धारा 09)
- सुख-सुविधा में हस्तक्षेप के विरुद्ध अधिकार:- मकान के मालिक, किरायेदार के सुख-सुविधा में हस्तक्षेप नहीं कर सकता है। सुख-सुविधा के अंतर्गत जलापूर्ति, गलियारों और सीढ़ियों की रोशनी, लिफ्ट और सफाई से है। (धारा 10).
- किराया वृद्धि के विरुद्ध अधिकार:– किराया वृद्धि हमेशा करार में तय शर्तों के अनुसार ही होगा। यदि करार किराया वृद्धि के विंदु पर मौन है तब किराया में वृद्धि दोनों पक्षों की सहमति से या न्यायालय के आदेश के अनुसार ही होगा। (धारा 04)। श्री भगवती होशियारी मिल्स प्राइवेट लिमिटेड बनाम बिहार सरकार के वाद में माननीय पटना उच्च न्यायालय ने व्यवस्था दिया कि किराया में बढ़ोतरी एक बार में पिछली किराया से 25% से अधिक नहीं हो सकती है।
- बेदखली के विरुद्ध अधिकार:– कोई भी मकान-मालिक मनमाना तरीके से किरायेदार के कब्जाधींन मकान से बेदखल नहीं कर सकता है। उसकी एक प्रक्रिया बनी हुई है। बेदखली केवल और केवल करार में वर्णित शर्त के उलँघन (जैसे, किराया भुगतान में चूक इत्यादि), किरायेदार द्वारा मकान को क्षति पहुंचाना, मकान-मालिक की निजी जरूरत इत्यादि के आधार पर ही हो सकता है। परन्तु इसके लिए मकान-मालिक द्वारा कम – से – कम दो माह पूर्व इस आशय की सूचना किरायेदार को देना जरूरी होगा
- किरायेदार के उत्तराधिकारी संबंधी अधिकार :- किरायेदारी के दौरान यदि किरायेदार की मृत्यु हो जाती है तब की स्थिति में उक्त मकान में रहने का हक प्रथमतः मृतक की पति/पत्नी का होता है। उसके बाद पुत्र, अविवाहित पुत्री, माता-पिता, पुत्र की विधवा का हक होता है। (धारा 02)
✍दिलीप कुमार
(संपत्ति और परिवार के अधिवक्ता)
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