नीचे लिखे प्रावधानों का कठोरता से पालन करने पर त्वरित न्याय की प्राप्ति मुमकिन है।
- घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम 2005 के अधीन प्रस्तुत वाद की सुनवाई, वाद प्रस्तुत करने के दो माह के भीतर किया जाने का कानूनी प्रावधान है। U/s -12(5) DV Act
- N.I.Act के अंतर्गत प्रस्तुत वाद की सुनवाई 06 माह के अंदर किया जाने का कानूनी प्रावधान है। (U/s -143(3) N.I.Act)
- POCSO अधिनियम के तहत अपराध का विचरण संज्ञान की तिथि से एक वर्ष के भीतर किया जाना है। U/s- 35(2) POCSO Act.
- यदि कोई Injunction आदेश, विरोधी पक्षकार को सूचना दिए बिना दिया गया है, वहाँ न्यायालय उक्त आवेदन को तीस दिन के भीतर निबटाएगा। यदि उक्त तीस दिन के भीतर उकसा निबटारा नहीं होता हो तो नहीं निबटाने का कारण बताएगा होगा। (U/o – 39, R- 3A CPC)
- फॅमिली कोर्ट में प्रस्तुत प्रत्येक आवेदन, (जिसमें डिवोर्स भी शामिल है) कि सुनवाई छः माह के अंदर पुरा करना है। (u/s 21B (2) of the H.M. Act. 1955)
- फॅमिली कोर्ट के किसी आदेश के विरुद्ध किए गए अपील की सुनवाई तीन माह के अंदर किया जाने का कानूनी प्रावधान है। (u/s 21B (3) of the H.M. Act. 1955)
- पति/पत्नी यदि अक्षम है और दूसरे पक्षकार के विरुद्ध वादकालीन भरण-पोषण या मुकदमे के खर्च हेतु आवेदन देता/देती है तो उस आवेदन का निस्तारण नोटिस के 60 दिनों के भीतर किया जाने का कानूनी प्रावधान है। (u/s 21B (3) of the H.M. Act. 1955)
- बच्चे की अभिरक्षा, भरण-पोषण और शिक्षा के लिए आवेदन का निस्तारण प्रतिपक्षी को नोटिस की तमिल से 60 दिनों के अंदर किया जाने का कानूनी प्रावधान है। (u/s 26 of the H.M. Act 1955)
- दंड-प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के अंतर्गत प्रस्तुत आवेदन की सुनवाई प्रतिपक्षी को नोटिस की तमिल से 60 दिनों के अंदर किया जाने का कानूनी प्रावधान है। (U/s 125 Cr.P.C)
- बिहार भूमि विवाद निराकरण अधिनियम 2009 के अंतर्गत प्रस्तुत वाद की सुनवाई वाद प्रस्तुत किया जाने से तीन माह के अंदर किया जाने का कानूनी प्रावधान है। (U/s 09 of the BLDR Act.)
✍ दिलीप कुमार
(अधिवक्ता)
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