एक किरायेदार ने मुझे फोन पर अपनी पीड़ा इस प्रकार सुनाया। “मेरा नाम रामू (काल्पनिक) है। मैं मुजफ्फरपुर बिहार से बोल रहा हूँ। मैं किरायेदार हूँ। कोरोना के कारण विश्वव्यापी बंदी (लॉकडाउन) में मेरी रोजगार चली गई, मैं बेरोजगार हो गया। मैं मकान मालिक को किराया नहीं दे पा रहा हूँ। मकान मालिक धमकी दे रहे है कि यदि दो महीने तक किराया नहीं दिया तो वे मेरे विरुद्ध न्यायालय में निष्कासन का वाद प्रस्तुत करेंगे। मेरी आर्थिक स्थिति तत्काल में किराया देने लायक नहीं है। मेरा आपसे सवाल यह है कि लॉकडाउन की अवधि में किराया नहीं देना किरायेदार के विरुद्ध बेदखली का आधार हो सकता है”?
उत्तर: – रामू जी, उच्चतम न्यायालय ने कोरोनोवायरस महामारी के बीच अदालतों से संपर्क करने में वादियों को होने वाली कठिनाइयों के मद्देनजर 15 मार्च, 2020 से सभी सामान्य और विशेष कानूनों के तहत चल रहे सीमा अवधि को निलंबित करने का आदेश दिया है। इस संबंध में मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे और जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस सूर्यकांत की तीन जजों की खंडपीठ ने फैसला सुनाया, “इस तरह की कठिनाइयों को कम करने के लिए और यह सुनिश्चित करने के लिए कि इस न्यायालय सहित पूरे देश में संबंधित न्यायालयों/न्यायाधिकरणों में ऐसी कार्यवाही दायर करने के लिए वकीलों/वादियों को शारीरिक रूप से आना पड़ता है, इसके लिए आदेश दिया जाता है कि इस तरह की सभी बैठकों में मर्यादा की परवाह किए बिना सामान्य कानून या विशेष कानूनों के तहत निर्धारित सीमा चाहे वह अनुकूल हो या न हो 15 मार्च 2020 के बाद अगले आदेश तक निलंबित रहेगी। “बेंच ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी विशेष शक्तियों को लागू करने का आदेश पारित किया। इसके अलावा, यह माना गया कि अनुच्छेद 141 के अनुसार सभी न्यायालयों/न्यायाधिकरणों के लिए बाध्यकारी होगा।
शीर्ष न्यायालय ने यह भी निर्देश दिया है कि यह आदेश सभी उच्च न्यायालयों और अधीनस्थ न्यायालयों / न्यायाधिकरणों के ध्यान में लाया जाए।
अतः लॉकडाउन की अवधि (यानि दिनांक 15.03.2020 से लॉकडाउन समाप्त होने तक) में किराया नहीं देना किरायेदार के विरुद्ध बेदखली का आधार नहीं हो सकता है।
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