क्या है मुस्लिम विवाह: –
मुस्लिम विवाह को निकाह के नाम से जाना जाता है। निकाह मुस्लिम विवाह के पक्षकारों के बीच वंश-वृद्धि के उद्देश्य से किया गया एक सिविल संविदा है। इस संविदा में वर और कन्या दोनों का शादी के प्रयोजन हेतु वयस्क होना, दोनों की सम्मति का स्वतंत्र होना और प्रतिफल का होना आवश्यक है। प्रतिफल को मेहर कहा जाता है।
मुस्लिम पति को तलाक देने की अप्रतिबंधित शक्ति प्राप्त है:-
मुस्लिम विधि में मुस्लिम पति को तलाक देने की अप्रतिबंधित शक्ति प्राप्त है, परंतु मुस्लिम महिला को ऐसी शक्ति प्राप्त नहीं है। तलाक के बाद मुस्लिम महिला को अपने पति से भरण-पोषण की शक्ति भी काफी सीमित है। वह पति से इद्दत की अवधि तक ही भरण-पोषण की मांग कर सकती है।
इद्दत की अवधि क्या है:-
इद्दत एक ऐसी अवधि जिसमे तलाक या पति की मृत्यु के पश्चात मुस्लिम महिला को दूसरी शादी करने की इजाजत नहीं होती है। यह अवधि तलाक कि स्थिति में तीन मासिक-धर्म या चांद्रमास तक या पति की मृत्यु की स्थिति में मृत्यु से 04 माह और 10 दिन की होती है।
कब और किनसे भरण–पोषण की मांग की जा सकती है: –
मुस्लिम महिला इद्दत की अवधि में पति से भरण-पोषण की मांग कर सकती है उसके बाद अपने पति से भरण-पोषण की मांग नहीं कर सकती है। मुस्लिम विधि के अनुसार तलाकशुदा पत्नी जिसने पुनर्विवाह नहीं की है और अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ है अपने बच्चे से भरण-पोषण की मांग कर सकती है। बच्चे के नहीं रहने या असमर्थ रहने पर अपने माता-पिता से। यदि माता-पिता नहीं है तो वैसे रिस्तेदार से जो उस महिला के मृत्यु के उपरांत उसकी संपत्ति को उत्तराधिकार में प्राप्त करने के हकदार है। यदि ऐसे रिस्तेदार भी नहीं है तो संबंधित राज्य के वक्फ-बोर्ड को भरण-पोषण के लिए आदेशित किया जा सकता है।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 का लागू होना: –
पति की सहमति होने पर तलाकशुदा मुस्लिम महिला इद्दत की अवधि के पश्चात भी अपने पति से दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के अंतर्गत भरण-पोषण की मांग कर सकती है।
भरण-पोषण की राशि कितनी हो सकती है:-
भरण-पोषण की राशि पति-पत्नी की आपसी सहमति से या न्यायालय द्वारा निश्चित किया जा सकता है।
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