यह घटना उस समय की है, जब मैं स्नातक का छात्र था। मुझे अपनी पढ़ाई के लिए खर्चे की व्यवस्था खुद करनी पड़ती थी, और इसीलिए मैं पढ़ाई के साथ-साथ रोजगार की तलाश में भी था। किसी तरह, अपने एक दोस्त के सहयोग से मुझे एक होम ट्यूटर का काम मिल गया। वह विद्यार्थी 5वीं कक्षा का छात्र था, जिसे मुझे पढ़ाना था। दोस्त द्वारा मुझे विद्यार्थी के घर पर ले जाया गया। उस समय विद्यार्थी नहीं था, उसकी मां थी। परिचय हुआ और पढ़ाने के लिए शाम के 05 बजे का समय निश्चित किया गया।
मैं निर्धारित समय पर उनके घर पहुंच गया, बेल बजाया। मुझे यह पहली बार कुछ खास अनुभव हो रहा था। इससे पहले मैंने कभी ट्यूशन नहीं पढ़ाया था। विद्यार्थी की माँ सामने दाखिल हुई। घर के एक कमरे की तरफ मुझे ले गई, जहां विद्यार्थी बैठा हुआ था। घर के अंदर दाखिल होते ही मुझे एक अलग माहौल का सामना करना पड़ा। मैंने उस छात्र के दूसरी तरफ की कुर्सी पर बैठ गया।
कुछ देर पढ़ाने के बाद, अचानक विद्यार्थी की माँ आई और उनके हाथ में एक ट्रे था, जिसमें दो ग्लास थे – एक में दूध और दूसरे में पानी, और एक कप चाय भी था। उन्होंने उन ग्लासों को मेरे सामने रखा और कमरे से बाहर निकाल गई। फिर वह अपने काम में व्यस्त हो गईं। मुझे यह जानकारी थी कि आमतौर पर शिक्षक को ट्यूशन के दौरान हल्का सा नास्ता दिया जाता है। मुझे लगा कि ये ग्लास दूध और पानी मेरे लिए हैं।
अब मेरे मन में सवाल था कि पहले क्या पिया जाए – दूध या पानी? अंततः मैंने यह सोचते हुए कि शायद दूध से शुरुआत करनी चाहिए। मैंने एक साँस में पूरा ग्लास दूध खत्म कर दिया। जैसे ही मैंने दूध का ग्लास रखा और पानी का ग्लास उठाया, विद्यार्थी की माँ वापस कमरे में आई और चौंकते हुए बोली, “अरे, इतनी जल्दी! तुमने दूध पी लिया?” विद्यार्थी की माँ ने अपने बेटे से पूछा। विद्यार्थी बोला, “दूध तो सर जी पी गए है। यह सुनकर मेरी आँखें चौड़ी हो गईं और मुझे समझ में आया कि दूध तो छात्र के लिए था, और मैंने गलती से पूरा ग्लास खुद ही पी लिया था। अब मेरी स्थिति काफी अजीब हो चुकी थी। विद्यार्थी की माँ भीतर के कमरे में चली गई, लेकिन मुझे लगा कि वह मेरी गलती को लेकर मुस्कुरा रही हैं। तभी, मुझे अंदर से हंसी की आवाजें सुनाई दीं। अब मुझे समझ में आया कि ये हंसी मेरे दूध पीने के कारण थी।
थोड़ी देर तक मैं अपनी कुर्सी पर बैठा ही रहा, फिर मैंने पानी का ग्लास उठाया और चुपचाप उसे पीने की कोशिश की।
इतने में, नौकरानी और घर के सभी सदस्य एक-एक करके दरवाजे के पर्दे से झांकने लगे और मुझे बड़ी मुस्कान के साथ देख रहे थे। यह देख कर मैं थोड़ा और शर्मिंदा हो गया।
अब मुझे लगा कि मैं जल्दी से जल्दी वहाँ से निकल जाऊं। मैंने तुरन्त उस छात्र को होमवर्क दिया और जैसे ही मुझे मौका मिला, पसीना पोंछते हुए घर से बाहर निकल आया। बाहर आकर मैंने सोचा, “यह तो मजेदार अनुभव था, लेकिन अब अगले दिन से मैं शायद इस घर में वापस न जाऊं।” और फिर, सचमुच, मैंने अगले दिन से उस घर में ट्यूशन पढ़ाने जाने का कभी सोचा नहीं।
वो घटना मेरे जीवन का एक मजेदार अनुभव बन गई, और जब भी मैं पुराने दिनों को याद करता हूँ, तो मुझे उस दूध के ग्लास और विद्यार्थियों की माँ की मुस्कान याद आती है।
✍दिलीप कुमार
अधिवक्ता
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