लिषा, एक सुंदर और बुद्धिमान लड़की, का जन्म मुजफ्फरपुर जिले के एक छोटे से गाँव में हुआ था। उसने अपनी मेहनत और लगन से MBA की पढ़ाई पूरी की और बेंगलुरु में एक प्रतिष्ठित कंपनी में उच्च पद पर कार्यरत हो गई। वह न केवल हिंदी और अंग्रेजी, बल्कि कई अन्य भाषाओं में भी धाराप्रवाह थी। लिषा का सपना था कि वह अमेरिका में बसकर अपने कैरियर को नई ऊंचाइयों तक ले जाए। उसके मन में एक ऐसे जीवनसाथी की तमन्ना थी, जो उसे इस दिशा में सहयोग करे। और अंततः उसने अपने जीवनसाथी के रूप में “शाल” नामक युवक को चुना, जो अमेरिका में कार्यरत था (दोनों नाम काल्पनिक हैं)। शादी से पहले “शाल” ने “लिषा” के प्रस्ताव को स्वीकार किया था। दोनों की शादी कोलकाता में सम्पन्न हुई थी। शादी के बाद, उसने अपने पति से अमेरिका जाने की बात की, जिसे उसने पहले स्वीकार किया था, लेकिन बाद में उसका पति अपने वादे से मुकर गया। लिषा ने अपने सपनों को साकार करने के लिए अपने पति की इच्छा के विरुद्ध अमेरिका पहुंच गई।
जब वह वाशिंगटन एयरपोर्ट पर पहुंची, तो उसका पति उसे अकेला छोड़कर भाग गया। लिषा ने पुलिस की मदद ली और पुलिस के सहयोग से लगभग आठ घंटे अकेले बिताने के बाद, पुलिस ने उसके पति को पकड़कर लिषा के पास ले आया। फिर, लिषा का पति उसे एक ऐसे घर में ले गया, जो मानव निवास के लिए उपयुक्त नहीं था। अपने पति के साथ अमेरिका में लिषा का सपना टूटता हुआ नजर आ रहा था और विवाद बढ़ने लगा। उनके बीच विवाद इतना बढ़ गया कि किसी ने अमेरिकी पुलिस को फोन कर दिया। पुलिस आई और लिषा को गिरफ्तार कर लिया। जब लिषा से पूछा गया कि अमेरिका में उसका अपना कौन है, तो उसने बताया कि उसका पति, जिसका नाम “शाल” था। कुछ समय बाद, दोनों ने अपने मतभेद सुलझाने की कोशिश की और भारत लौटने का फैसला किया।
भारत लौटने पर, लिषा के पति ने उसे एयरपोर्ट पर छोड़ दिया और भाग गया। जब लिषा अपने ससुराल पहुंची, तो उसे ससुरालवालों ने घर में घुसने नहीं दिया। लिषा के अनुसार, ससुरालवालों द्वारा दहेज की मांग की गई थी और दहेज की पूर्ति न होने पर उसे घर में प्रवेश नहीं करने दिया गया। वह अपने पिता के घर वापस आ गई और अपने आत्मसम्मान और अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी। उसने कानूनी सहायता ली और अपने ससुराल वालों के खिलाफ दहेज उत्पीड़न का मामला दर्ज किया।
लिषा ने अपने संघर्षों से हार नहीं मानी। उसने दहेज प्रताड़ना, घरेलू हिंसा, भरण-पोषण और दाम्पत्य संबंध के पुनर्स्थापन हेतु वाद मुजफ्फरपुर के न्यायालय में प्रस्तुत किया। न्यायालय के आदेश से लिषा अपने ससुराल गई। पहले तो ससुरालवालों ने उसे घर में घुसने नहीं दिया, लेकिन पुलिस के दबाव में उन्होंने उसे घर में प्रवेश करने दिया। हालांकि, कुछ ही दिनों बाद ससुरालवाले खुद घर छोड़कर चले गए। लिषा के पति ने बार-बार अपने अधिवक्ता के माध्यम से सहमति से तलाक लेने और एकमुस्त भरण-पोषण का प्रस्ताव दिया, लेकिन लिषा ने उसे अस्वीकार कर दिया। वह हमेशा दाम्पत्य संबंध के पुनर्स्थापन की बात करती रही। भारत की धरती पर शायद लिषा का मुकदमा पहला मुकदमा था, जिसमें घरेलू हिंसा के मामले में भारत के न्यायालय ने शाल के प्रत्यर्पण का आदेश दिया था। लिषा में एक कमजोरी थी, खुश होने की कमजोरी। प्रत्येक ऐसा आदेश, जिससे उसका पति पीड़ित महसूस करता था, उस पर लिषा खुश होती थी। उसे बार-बार समझाया गया कि पति को पीड़ा पहुंचाने वाले आदेश पर खुश होना पति के मन में पत्नी के प्रति घृणा उत्पन्न कर सकता है, जो कानूनी रूप से उसे दाम्पत्य संबंध के पुनर्स्थापन से बाधित कर सकता है, और अप्रत्यक्ष रूप से तलाक के करीब ले जा सकता है।
दोनों के बीच मुजफ्फरपुर, कोलकाता, पटना और भारत के सर्वोच्च न्यायालय में करीब 40 वाद लंबित थे। मजेदार बात यह थी कि पति डिवोर्स तो चाहता था, लेकिन उसने डिवोर्स का कोई आवेदन प्रस्तुत नहीं किया था। शाल ने प्रत्यर्पण के आदेश को कोलकाता उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी। कोलकाता उच्च न्यायालय ने उक्त आदेश को वैध करार देते हुए शाल के आवेदन को निरस्त कर दिया। उक्त आदेश से पीड़ित होकर शाल ने सर्वोच्च न्यायालय का रुख किया। दोनों पक्षों के बीच लंबित सभी मामले और संवाद को आधार बनाकर सर्वोच्च न्यायालय से तलाक स्वीकार करने की अपील की। सर्वोच्च न्यायालय ने भरण-पोषण की एकमुस्त राशि तय करके तलाक मंजूर कर लिया।
कहानी का सार यह है कि यदि कोई व्यक्ति दाम्पत्य संबंध के पुनर्स्थापन की इच्छा रखता है और अपने पति या पत्नी को पीड़ा पहुँचाने वाले किसी आदेश से खुश होता है, और उस खुशी को सामूहिक रूप से व्यक्त भी करता है, तो वह अनजाने में तलाक के करीब पहुंचता जा रहा होता है। पति-पत्नी का रिश्ता विश्वास और समझ का होता है, और यदि इस रिश्ते में विश्वास का अभाव हो, तो इसे एक बीमार रिश्ता कहा जा सकता है। आज यह स्थापित होता जा रहा है कि यदि रिश्ता बीमार हो, तो उसका इलाज तलाक ही बनता है।
यह कहानी उन सभी दम्पत्ति के लिए एक सशक्त संदेश है कि अगर आप अपने जीवनसाथी से दाम्पत्य संबंध को पुनः मजबूत करना चाहते हैं, तो किसी भी ऐसे आदेश से खुश होना और उसके सामूहिक रूप से व्यक्त करना या इस प्रकार व्यक्त करना जो दूसरे पक्ष तक पहुंचाने के नियत से किया गया हो, दरअसल तलाक की ओर बढ़ने का संकेत है। रिश्ते में प्यार और विश्वास को बनाए रखें, तभी यह रिश्ता जीवन भर के लिए स्थायी और सुखमय बन सकता है।
✍ डिस्प्यूट-ईटर
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