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न्यायालयों में बुनियादी सुविधाओं की कमी: “डिस्प्यूट-ईटर” की नजर में।

Adv. Dilip Kumar by Adv. Dilip Kumar
November 15, 2024
in Latest Articles
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न्यायालयों में बुनियादी सुविधाओं की कमी: “डिस्प्यूट-ईटर” की नजर में।
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न्यायपालिका का कार्य लोकतंत्र की रीढ़ की हड्डी माना जाता है। यह सुनिश्चित करता है कि नागरिकों को न्याय मिल सके, उनका अधिकार सुरक्षित रहे, और उनके मामलों का निपटारा पारदर्शी तथा त्वरित रूप से किया जा सके। हालांकि, भारतीय न्यायालयों में इन बुनियादी कार्यों को पूरा करने के लिए जो आवश्यक सुविधाएं और संसाधन होने चाहिए, उनका भारी अभाव है। इसमें न केवल जजों और कर्मचारियों की कमी, बल्कि अन्य बुनियादी सुविधाओं की भी घातक कमी दिखाई देती है। ऐसे में न्यायालयों की कार्यप्रणाली और नागरिकों को मिल रहे न्याय में काफी विघ्न उत्पन्न होते हैं। इस पर व्यापक ध्यान देने की आवश्यकता है।

  1. जजों की कमी

भारत में न्यायालयों में जजों की भारी कमी है। भारतीय न्यायपालिका के आंकड़े बताते हैं कि देशभर में न्यायाधीशों की स्थिति अत्यंत चिंताजनक है। विशेषकर जिला और उच्च न्यायालयों में जजों की कमी का असर सीधे तौर पर न्यायिक प्रक्रिया पर पड़ता है। जहां एक ओर न्यायिक व्यवस्था में तेजी की आवश्यकता है, वहीं दूसरी ओर लंबित मामलों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। यह स्थिति नागरिकों के लिए न्याय पाने में और अधिक कठिनाई उत्पन्न करती है। इस कमी को दूर करने के लिए एक सशक्त और त्वरित नियुक्ति प्रक्रिया की आवश्यकता है।

  1. कर्मचारी की कमी

न्यायालयों में कर्मचारियों की कमी भी एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। अदालतों में सही समय पर काम न हो पाने का एक कारण कर्मचारियों की कमी है। प्रशासनिक और सहायक कर्मचारियों की आवश्यकता के बिना न्यायिक कार्य सुचारू रूप से नहीं चल सकते। इससे न केवल न्याय की प्रक्रिया में देरी होती है, बल्कि मामले के अभिलेखों और दस्तावेजों की सही तरीके से देखभाल भी नहीं हो पाती। कर्मचारियों की कमी को पूरा करने के लिए पर्याप्त बजट और भर्ती प्रक्रिया को तेज किया जाना चाहिए।

  1. अभिलेखों की समुचित व्यवस्था

न्यायालयों में अभिलेखों और दस्तावेजों की उचित व्यवस्था का न होना भी एक बड़ी समस्या है। अक्सर यह देखा जाता है कि महत्वपूर्ण दस्तावेजों और केस के अभिलेख खो जाते हैं या अस्त-व्यस्त हो जाते हैं। ऐसे में निर्णय लेने में भी कठिनाई होती है। अभिलेखों की समुचित और सुरक्षित व्यवस्था के लिए डिजिटलीकरण की प्रक्रिया को तेज़ी से लागू किया जाना चाहिए। यह केवल पारदर्शिता ही नहीं, बल्कि न्याय की त्वरित और सही प्रक्रिया के लिए भी अत्यंत आवश्यक है।

  1. अधिवक्ताओं के लिए बैठने की व्यवस्था

न्यायालयों में अधिवक्ताओं के बैठने के लिए पर्याप्त स्थान का अभाव है। अदालतों के गलियारे और परिसर में अधिवक्ताओं का खड़ा रहना या किसी अन्य स्थान पर बैठना आम बात हो गई है। इससे न केवल अधिवक्ताओं को असुविधा होती है, बल्कि अदालत की कार्यप्रणाली भी प्रभावित होती है। इसके समाधान के लिए न्यायालय परिसरों में अधिवक्ताओं के लिए उचित बैठने की व्यवस्था की जानी चाहिए।

  1. पार्किंग की समुचित व्यवस्था

न्यायालयों में पार्किंग की कमी भी एक गंभीर समस्या है। खासकर शहरों में, जहां अदालतों का कामकाजी दबाव ज्यादा होता है, वहाँ पार्किंग की व्यवस्था न होने के कारण वाहनों को सड़क किनारे खड़ा किया जाता है, जिससे ट्रैफिक जाम की स्थिति उत्पन्न होती है। यह स्थिति न केवल वकीलों और न्यायाधीशों के लिए, बल्कि आम जनता के लिए भी असुविधाजनक होती है। अदालतों में पार्किंग की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए, जिससे न्यायालय परिसरों में आने-जाने वाले सभी लोगों को सुगमता हो सके।

  1. पुस्तकालयों में किताबों की कमी

न्यायालयों के पुस्तकालयों में पुस्तकें और साहित्य की कमी होना भी एक महत्वपूर्ण समस्या है। पुस्तकालयों में आवश्यक कानूनी पुस्तकें, संदर्भ सामग्री और विधिक शोध सामग्री का अभाव होता है, जिससे वकील और न्यायाधीश अपने मामलों की सही तरीके से जांच और विचार नहीं कर पाते। इससे न्यायिक निर्णयों में भी त्रुटि की संभावना बढ़ जाती है। पुस्तकालयों के संसाधनों में सुधार के लिए एक सशक्त योजना की आवश्यकता है।

  1. जवाबदेही की कमी

न्यायपालिका के कार्य में जवाबदेही की कमी भी एक चिंता का विषय है। न्यायालयों में कोई भी संस्था, कर्मचारी या अधिकारी अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो जाता है, और यह स्थिति न्यायिक प्रक्रिया को प्रभावित करती है। जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए एक सख्त निगरानी और मूल्यांकन प्रणाली की आवश्यकता है, जिससे न केवल कार्यप्रणाली में सुधार हो, बल्कि भ्रष्टाचार और लापरवाही को भी रोका जा सके।

मुख्य न्यायमूर्ति से अपेक्षाएं

न्यायपालिका का मुख्य उद्देश्य नागरिकों को शीघ्र और सही न्याय प्रदान करना है। इसके लिए न्यायालयों में बुनियादी सुविधाओं की कमी को दूर करना अनिवार्य है। इसके साथ ही, जजों, कर्मचारियों, अभिलेखों, पुस्तकालयों और अन्य संसाधनों की पर्याप्त व्यवस्था की जानी चाहिए, ताकि न्यायिक कार्य में कोई अवरोध न हो और प्रत्येक नागरिक को समय पर उसकी अपेक्षित न्याय व्यवस्था मिल सके।

✍ डिस्प्यूट-ईटर

Adv. Dilip Kumar

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