हिन्दू धर्म के अनुसार किसी व्यक्ति की जाति का निर्धारण उसके जन्म से होता है और कोई भी हिन्दू अपनी ईच्छानुसार अपनी जाति नहीं बदल सकता है। वही दूसरी ओर हिन्दू दत्तक और भरण पोषण अधिनियम 1956 की एक महत्वपूर्ण विशेषता है कि वह जाति के आधार पर किसी भी प्रकार की विभेद नहीं करती है। ईस अधिनियम के अनुसार दत्तक देनेवाला, दत्तक लेनेवाला और जो बालक दत्तक में दिया जा रहा है, तीनों का हिन्दू होना जरूरी है। अधिनियम के अनुसार “जाति” दत्तक के प्रयोजन के लिए पूर्णतः महत्वहीन है।
जहां तक सवाल दत्तक पुत्र/पुत्री की जाति का है, ईस पर दत्तक एवं भरण-पोषण अधिनियम पूर्णतः मौन है। अतः दत्तक पुत्र/पुत्री की जाति के निर्धारण के लिए न्यायिक निर्णय ही एक सहारा है।
दत्तक पुत्र की जाति से संबंधित विवाद दो परिस्थितियों में होती है:-
- जब दत्तक पुत्र के जैविक पिता/माता की जानकारी हो।
- जब दत्तक पुत्र के जैविक पिता/माता की जानकारी नहीं हो।
दत्तक पुत्र की जाति से संबंधित विवाद के संदर्भ में न्यायालय द्वारा अन्तर्जातिय विवाह से उत्पन्न संतान के लिए निर्धारित जाति निर्धारण के तरीका के अनुसार ही फैसला सुनती है। जिस प्रकार शादी से किसी व्यक्ति की जाति नहीं बदलती है उसी प्रकार दत्तक लेने-देने से दत्तक पुत्र/पुत्री की जाति नही बदलती है। परंतु यदि दत्तक पुत्र/पुत्री की जैविक पिता की जानकारी नही होने की स्थिति में कानून यह व्यवस्था दिया है कि दत्तक पिता की जाति ही दत्तक पुत्र/पुत्री की जाति मानी जायेगी। यदि किसी वैसे पुत्र/पुत्री को जिसकी जैविक पिता/माता अज्ञात है और किसी अविवाहित महिला द्वारा गोद लिया जाता है, तब दत्तक पुत्र/पुत्री की जाति दत्तक माता की जाति से निर्धारित की जायेगी।
✍️ दिलीप कुमार (अधिवक्ता)
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