सभी धर्मों की अपनी-अपनी पारिवारिक विधि है। सभी में कुछ अलग-अलग मान्यतायें है, समानता और असमानता भी है। सभी धर्मों में एक समानता है, वह यह कि पति-पत्नी आपस में एक अदृश्य गाँठ से बंधे होते है। उस गाँठ को वैवाहिक गाँठ कहा जाता है। उसको खोलना या तोड़ देना तलाक कहा जाता है। पौराणिक हिन्दू विधि के अनुसार यह गाँठ अटूट होता था। यह अटूट गाँठ कभी-कभी विवाह के पक्षकारों को काफी पीड़ा पहुंचता था। उस पीड़ा को कम करने के लिए वर्ष 1955 में उस गाँठ को न्यायिक आदेश से तोड़ने वाला गाँठ बनाया गया और वर्ष 1976 में इस गाँठ को आपसी सहमति से तोड़ने की कानूनी व्यवस्था कर दिया गया है। जब शादी का एक पक्षकार तलाक चाहता है और दूसरा नहीं चाहता है तब वैसा तलाक एकतरफा तलाक कहलाता है।
किसी भी धर्म में शादी करना या न करना किसी व्यक्ति का प्राइवेट मामला हो सकता है परंतु शादी तोड़ना किसी व्यक्ति का प्राइवेट मामला नहीं हो सकता है। इसीलिए शादी तोड़ने की प्रक्रिया को लचीला न बनाकर थोड़ा कठोर बनाया गया है। हिन्दू विधि के अनुसार कोई दम्पत्ति एक दूसरे को खुद तलाक नहीं दे सकता है। तलाक चाहने वाले पक्षकार को न्यायालय से तलाक की याचना करनी पड़ती है। यह याचना एक याचिका के माध्यम से की जाती है। उस याचिका में याची जिस आधार पर तलाक की मांग करता है उसका जिक्र होता है। वह आधार निम्नलिखित में से कोई एक या एक से अधिक हो सकता है: –
- विवाह के बाद पति या पत्नी में से कोई किसी दूसरे के साथ स्वेच्छा से संभोग किया हो।
- याचिका प्रस्तुत करने वाले पक्षकार के साथ क्रूरतापूर्ण व्यवहार किया गया हो।
- याचिका प्रस्तुत करने वाले पक्षकार को दो वर्ष या उससे अधिक अवधि तक परित्यक्त रखा गया हो।
- विपक्षी एस प्रकार के मानसिक विकार से पीड़ित हो कि उसके साथ रहना संभव नहीं हो।
- विपक्षी उग्र कुष्ठ रोग से पीड़ित हो।
- विपक्षी यौन रोग से पीड़ित हो।
- विपक्षी संसार को त्याग कर सन्यासी हो गया हो।
- न्यायिक पृथक्करण की डिक्री पारित होने के पश्चात एक वर्ष या उससे अधिक समय तक सहवास प्रारंभ नहीं हुआ हो।
- दाम्पत्य अधिकारों के पुनर्स्थापन की डिक्री पारित होने के एक वर्ष या अधिक समय तक दाम्पत्य अधिकार का पुनर्स्थापन नहीं हुआ हो।
इसके आलवे पत्नी को तीन और विकल्प है जिसके आधार पर वह तलाक का वाद ला सकती है।
- यदी पति विवाह के बाद बलात्कार, गुदामैथुन या पशुगमन का दोषी पाया गया हो।
- पत्नी अलग रह रही है तो भी उसके पक्ष में भरण-पोषण का आदेश पारित किया गया हो और एक वर्ष या उससे अधिक समय तक सहवास नहीं हुआ हो।
- पत्नी की शादी 15 वर्ष की आयु प्राप्त करने से पूर्व किया गया हो तथा 18 वर्ष की आयु प्राप्त करने से पूर्व वह विवाह का निराकरण कर दिया है।
तलाक प्राप्त करने की प्रक्रिया
- तलाक प्राप्ति के लिए पीड़ित पक्ष को न्यायालय में एक याचिका (वाद-पत्र) प्रस्तुत करनी पड़ती है।
- तत्पश्चात वाद ग्रहण की विंदु पर सुनवाई की जाती है।
- वाद ग्रहण के बाद विपक्षी को नोटिस भेजी जाती है। और विपक्षी से जवाब की मांग की जाती है। विपक्षी का समय पर उपस्थित नहीं होने पर एकपक्षीए कार्रवाही की जा सकती है।
- विपक्षी द्वारा जवाब प्रस्तुत करने के बाद वाद विंदु का गठन किया जाता है।
- उसके बाद वादी की ओर से दस्तावेजी और मौखिक साक्ष्य प्रस्तुत किया जाता है।
- उसके बाद प्रतिवादी की ओर से दस्तावेजी और मौखिक साक्ष्य प्रस्तुत किया जाता है।
- उसके बाद दोनों पक्षों की ओर से argument की जाती है।
- तत्पश्चात न्यायालय द्वारा निर्णय दिया जाता है।
- उसके बाद निर्णय के अनुसार डिक्री तैयार की जाती है।
✍दिलीप कुमार
(संपत्ति और परिवार के वकील)
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