भारतीय समाज का परंपरागत नियम वृद्धों के प्रति सम्मान करने एवं देखरेख करने पर बल देता है। परिवार के वृद्ध सदस्यों का देखभाल खुद परिवार के सदस्यों द्वारा किया जाता रहा है। संयुक्त परिवार की स्थिति में वृद्ध सदस्यों का देखभाल आसान था, परंतु आधुनिक समय में हमारा समाज संयुक्त परिवार की जगह एकल परिवार को महत्व देने लगा, जिस कारण हम सभी संयुक्त परिवार का निश्चित विखंडन देख रहे है। संयुक्त परिवार के विखंडन से सबसे अधिक प्रभावित सदस्य, परिवार के वृद्ध व्यक्ति है। खासकर कमजोर वित्तीय श्रोत वाले वृद्ध (कुछ अपवादों को छोड़कर) अपने ही परिवार में भार के रूप में देखे जा रहे है।
वृद्ध की इसी स्थिति को देखते हुए माता-पिता एवं वरिष्ट नागरिक भरण-पोषण एवं कल्याण अधिनियम 2007 लाया गया। इस अधिनियम के तहत माता-पिता एवं वृद्ध को निम्नलिखित अधिकार प्राप्त है: –
1. विस्तार:-
यह अधिनियम सम्पूर्ण भारत और भारत के बाहर रहने वाले सभी भारतीय नागरिकों पर लागू होता है। यह अधिनियम बिहार में दिनांक 07.09.2012 से लागू है और माता – पिता के साथ-साथ 60 वर्ष से अधिक के प्रत्येक वृद्ध को लाभ पहुंचता है। इस अधिनियम के अनुसार यदि वृद्ध की आय उनकी जरूरतों को पूरा नहीं कर रहा है तो उनके संतान उनको समय पर भोजन, कपड़ा, आवास, ईलाज, मनोरंजन और समुचित सम्मान के लिए आबद्ध करता है ताकि वो सामान्य जीवन जी सके।
2. संतानहीन और समृद्ध वृद्ध का अधिकार:-
यदि किसी वृद्ध के पास पर्याप्त साधन है, उस स्थिति में उनका वह उत्तराधिकारी जो उनके मृत्यु के बाद उनकी संपत्ति प्राप्त करेगा तब यह अधिनियम उनको उपरोक्त सुविधा प्रदान करने के लिए बाध्य करता है। यदि एक से अधिक उत्तराधिकारी है तो प्रत्येक उत्तराधिकारी उसी अनुपात में दायित्वाधिन है जिस अनुपात में संपत्ति प्राप्त करने की संभावना है।
3. संतानहीन और गरीब वृद्ध के लिए व्यवस्था:- (धारा – 19)
संतानहीन और गरीब वृद्ध के लिए उपरोक्त व्यवस्था करने की पूरी जवाबदेही राज्य सरकार पर है। इसके लिए राज्य सरकार को प्रत्येक जिला में 150 की क्षमता वाला कम से कम एक वृद्धाश्रम की स्थापना करना है और संतानहीन और गरीब वृद्ध को उपरोक्त सुविधा प्रदान करनी है।
4. भविष्य में सेवा करते रहने की शर्त पर संपत्ति के अंतरण करने वाले वृद्ध का अधिकार:-
यदि किसी वृद्ध ने किसी व्यक्ति को भविष्य में सेवा करते रहने की शर्त पर अपनी संपत्ति अंतरित की है और संपत्ति प्राप्त करनेवाला आगे चलकर वृद्ध की सेवा करना बंद कर दिया है तो उक्त अंतरण कानून की नजर में कपट द्वारा प्राप्त माना जाएगा और वृद्ध के विकल्प पर शून्य घोषित किया जाएगा।
5. अधिकरण:-
इस अधिनियम की धारा 07 के तहत प्रत्येक अनुमंडल में एक अधिकरण का गठन किया गया है, जिसकी अध्यक्षता अनुमंडल अधिकारी द्वारा किया जाता है, जहां वृद्ध से जुड़े शिकायत प्रस्तुत करने की व्यवस्था की गई है। इस अधिकरण में वृद्ध खुद आवेदन प्रस्तुत कर सकते है, यदि वे खुद सक्षम नहीं है तो उनकी ओर से प्राधिकृत व्यक्ति या संगठन द्वारा आवेदन दिया जा सकता है। इसके आलवे अधिकरण द्वारा खुद संज्ञान लिया जा सकता है और विपक्षी को सुनवाई हेतु समुचित अवसर दिए जाने के बाद वृद्ध के आवेदन पर न्याय सम्मत आदेश पारित किया जा सकता है।
6. प्रक्रिया: –
इस अधिनियम के तहत सुनवाई की प्रक्रिया काफी सरल है। सुनवाई से पूर्व “सुलह अधिकारी” वाद को सुलह के आधार पर निबटारा कराने का प्रयास करते है, तत्पश्चात मामला अधिकरण के पास विचरण हेतु प्रेषित किया जात है।
7. समय सीमा: –
इस अधिनियम द्वारा प्रस्तुत शिकायत का निबटारा आवेदन प्रस्तुत करने से 90 दिनों के भीतर किए जाने का प्रावधान है।
✍दिलीप कुमार
(अधिवक्ता)
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