भारत में संपत्ति के वैध अंतरण के कुल पाँच तरीके है, जिसे कानून की भाषा में दान, पट्टा, विनिमय, विक्रय और बंधक के नाम से पुकारा जाता है। दान को छोड़कर शेष चारों तरीके में प्रतिफल के बदले दूसरी संपत्ति में का हित अंतरित किया जाता है। दान उपरोक्त चारों तरीके से पूर्णतः भिन्न है।
- दान क्या है?
वैसी चल या अचल संपत्ति जो विद्यमान हो, यानि जो वर्तमान में अस्तित्व में हो, उसका स्वेच्छया से और बिना किसी प्रतिफल के दान देनेवाला, दान लेनेवाला को अंतरित करता है,साथ-साथ जसके पक्ष में ऐसा अंतरण किया गया है उसके द्वारा या उसकी ओर से उस अंतरण को स्वीकार किया गया है, दान कहलाता है। दान देने वाला दाता और लेने वाला आदाता कहलाता है। (U/S 122 of the Transfer of the property Act) - क्या कोई व्यक्ति मेरे इच्छा के विरुद्ध मुझे दान दे सकता है?
दान को आदाता द्वारा स्वीकार किया जाना एक आवश्यक तत्व है। अतः कोई व्यक्ति मेरे ईच्छा के विरुद्ध मुझे दान नहीं दे सकता है। - किस प्रकार की संपत्ति का दान किया जा सकता है?
चल और अचल दोनों प्रकार की संपत्ति का दान किया जा सकता है। शर्त केवल इतना है कि दाता संपत्ति का स्वामी हो।यदि संपत्ति का स्वामी नहीं है तो वह उस संपत्ति का दान नहीं कर सकता है। - मुझे कोई संपत्ति दो माह बाद प्राप्त होने वाली है, क्या मैं उसका दान कर सकता हूँ?
नहीं, दान के लिए दान की जानेवाली संपत्ति का विद्यमान होना जरूरी है। संपत्ति प्राप्त होने की संभावना का दान नहीं किया जा सकता है। - क्या संयुक्त हिन्दू परिवार के अविभाजित संपत्ति का दान किया जा सकता है?
दान अपनी संपत्ति का ही किया जा सकता है। किसी व्यक्ति की अपनी संपत्ति दो तरह की होती है। प्रथम खुद की अर्जित संपत्ति और की अर्जित संपत्ति और दूसरा पैतृक संपत्ति में का हिस्सा पत्रिकसंपत्ति के विभाजन के उपरांत किसी हिस्सेदार को उनके हिस्से में मिली संपत्ति खुःद की संपत्ति कही जाती है और उसका दान किया जा सकता है। हिन्दू मिताक्षरा शाखा विधि के अनुसार यह सुस्थापित सिद्धांत है कि कोई भी हिन्दू अविभाजित पैतृक संपत्ति में से अपने हिस्से का दान नहीं कर सकता है। वह दान, कानून की नजर में शून्य है। - दान किसको किया जा सकता है?
दान किसी भी जीवित व्यक्ति को ही किया जा सकता है। मृत व्यक्ति के पक्ष में दान संभव नहीं है। यहाँ यह स्पष्ट करना जरूरी है कि दान के प्रयोजन के लिए मंदिर, ट्रस्ट, कम्पनी, निगम इत्यादि को जीवित व्यक्ति माना जाता है। - दाता जिस प्रयोजन के लिए दान करता है उसका वर्णन दान–पत्र में किया जाना जरूरी है या नहीं?
प्रयोजन दो प्रकार का हो सकता है। पूर्ववर्ती (दान करने से पूर्व) और पश्चातवर्ती (दान के पश्चात)।
पूर्ववर्ती प्रयोजन: – पूर्व का प्रयोजन यानि प्रतिफल के बिना दाता, आदाता के पक्ष में दान क्यों कर रहा है, इसका वर्णन दान–पत्र में करना वैकल्पिक है। दान–पत्र में इसका वर्णन करने अथवा न करने से कोई अंतर नहीं पड़ता है। कानून को केवल इतना से ही मतलब है कि दान केवल “दान करने के इरादे से” किया गया होना चाहिए, यानि दान स्वेच्छया से और किसी प्रकार के दबाव या भूलबस नहीं किया गया होना चाहिए।
पश्चातवर्ती प्रयोजन: – यदि दाता किसी खास उद्देश्य की पूर्ति जैसे शिक्षालय, चिकित्सालय इत्यादि की स्थापना हेतु दान कर रहा है तो दान–पत्र में इस तथ्य का उल्लेख आवश्य करना चाहिए। - क्या दान–पत्र का लिखित और निबंधित होना जरूरी है?
यदि संपत्ति का मूल्य 100 रुपया या उससे अधिक है तो उसका लिखित और निबंधित होना जरूरी है। साथ ही साथ दान–पत्र को दो व्यक्ति द्वारा अनुप्रमाणित होना भी जरूरी है। अनुप्रमाणन नहीं होने से दान–पत्र कानून की नजर में शून्य होगा। - क्या दान–पत्र को विखंडित किया जा सकता है?
संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 126 में दान-पत्र के विखंडन का प्रावधान है। धारा 126 के अनुसार दान-पत्र को उसी प्रकार विखंडित किया जा सकता है जिस प्रकार किसी सामान्य संविदा को विखंडित किया जाता है। अपवाद केवल यह है कि संविदा को प्रतिफल का अभाव या असफलता की दशा में भी विखंडित किया जा सकता है जबकि दान को प्रतिफल के अभाव या असफलता के आधार पर विखंडित नहीं किया जा सकता है - दान-पत्र को विखंडित करने हेतु वाद कहाँ प्रस्तुत किया जा सकता है?
दान-पत्र को विखंडित करने हेतु वाद सक्षम दीवानी न्यायालय में प्रस्तुत किया जा सकता है? - दान-पत्र को विखंडित करने हेतु एक बहुत महत्वपूर्ण प्रावधान The Maintenance & Welfare of Parents and Senior Citizens Act 2007 में किया गया है। इस अधिनियम की धारा 23(1) के अनुसार यदि कोई वरिष्ठ नागरिक की देख-भाल, बुनियादी सुविधाएं एवम बुनियादी भौतिक जरूरते को पूरा करते रहने की शर्त पर उनकी संपत्ति प्राप्त किया है और बाद में उक्त शर्त का उलँघन करता है तो ऐसा अंतरण कानून की नजर में कपट द्वारा किया गया अंतरण समझा जाएगा, जिसे वरिष्ठ नागरिक या उनकी ओर से दखील आवेदन पर ट्राइब्यूनल (SDM स्तर के पदाधिकारी) द्वारा निरस्त किया जा सकता है।
दिलीप कुमार
(अधिवक्ता)
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