IN THE SUPREME COURT OF INDIA
CIVIL APPELLATE JURISDICTION
CIVIL APPEAL NO. 1724 OF 2021
(ARISING OUT OF SLP (C) NO. 27881 OF 2019)
माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने निजी स्कूल में अपने बच्चे को पढ़ाने वाले अभिभावक के लिए राहत देनेवाला फैसला सुनाया है। दिनांक 03.05.2021 को माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने अपने 128 पेज के फैसला में कहा है कि निजी स्कूलों द्वारा लॉकडाउन के दौरान छात्रों द्वारा स्कूल गतिविधियों और सुविधाओं का उपयोग नहीं करने पर भी फीस की मांग करना ‘मुनाफाखोरी’ और ‘व्यावसायीकरण’ है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि शैक्षणिक संस्थान शिक्षा प्रदान करके चैरिटेबल का काम करते हैं। उन्हें स्वेच्छा से फीस कम करनी चाहिए। न्यायालय ने कहा कि एक निजी संस्थान को अपनी स्वयं की फीस तय करने की स्वायत्तता तब तक है जब तक उसका परिणाम मुनाफाखोरी और व्यावसायीकरण नहीं होता है और इस हद तक राज्य के पास नियम लागू करने की शक्ति है। कोर्ट ने कहा कि सीमा से अधिक फीस वसूलना मुनाफाखोरी और व्यावसायीकरण होगा। सुप्रीम कोर्ट ने स्कूलों को निर्देश दिया कि शैक्षणिक वर्ष 2020-21 के दौरान छात्रों द्वारा सुविधाओं का उपयोग नहीं किए जाने के एवज में फीस में 15 प्रतिशत की कटौती करें। कोर्ट ने फीस के भुगतान के लिए छह मासिक किस्तों की अनुमति भी दी है। कोर्ट ने कहा कि स्कूलों को छात्रों और अभिभावकों के सामने आने वाली कठिनाइयों के प्रति संवेदनशील होना चाहिए। कोर्ट ने स्कूलों को वार्षिक फीस का 85% लेने की अनुमति देते हुए निर्देश दिया कि स्कूल प्रबंधन किसी भी छात्र को फीस के गैर-भुगतान, बकाया राशि / बकाया किस्तों के लिए ऑनलाइन कक्षाओं या फिजिकल कक्षाओं में बैठने से मना नहीं करेगा और इसके साथ ही फीस के बकाया होने पर परीक्षा के रिजल्ट को जारी करने से रोका नहीं जाएगा। यदि माता-पिता को उपरोक्त वर्ष में शैक्षणिक वर्ष 2020-21 के लिए वार्षिक फीस भरने में परेशानी हो रही हो तो स्कूल प्रबंधन इस तरह के प्रतिनिधित्व के मामले पर सहानुभूतिपूर्वक विचार करना चाहिए।
सर्वोच्च न्यायालय के सम्पूर्ण आदेश के लिए नीचे क्लिंक करें: –
https://main.sci.gov.in/supremecourt/2019/38328/38328_2019_34_1501_27945_Judgement_03-May-2021.pdf
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