सर्वोच्च न्यायालय ने हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 06 की फिर से व्याख्या की है और अपनी पहले के फैसला से असहमति जताई जिसमें यह व्यवस्था दी गई थी कि हिन्दू उत्तराधिकार संशोधन अधिनियम 2005 का लाभ उन्हीं बेटियों को मिलेगी जिनके पिता 09.09.2005 को जीवित हो।
सर्वोच्च अदालत अपने फैसले में साफ कर दिया है कि अब वो बेटियां भी पैतृक संपत्ति में पुत्र के बराबर हिस्से की अधिकारी होंगी, जिनके पिता की मृत्यु 9 सितंबर 2005 से पहले हुई। पूर्व की व्यवस्था के अनुसार अगर पिता की मृत्यु 09 सितंबर 2005 से पहले हो चुकी होती थी तो ऐसी स्थिति में बेटियों को संशोधन का लाभ नहीं मिलता था। लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। देश की सबसे बड़ी अदालत ने अब इस फैसले के जरिये स्पष्ट कर दिया है कि बेटियों का भी वही अधिकार है जो बेटा का है, चाहे पिता की मृत्यु 09.09.2005 के पहले हुई हो या बाद में।
3 जजों की पीठ ने ये भी कहा कि बेटी जन्म के साथ ही पैतृक संपत्ति में बराबर की हकदार हो जाती है। अदालत ने फैसला सुनाते हुए ये भी कहा कि बेटी आजीवन हमवारिस ही रहेगी, भले ही पिता जिंदा हों या नहीं।
सुप्रीम कोर्ट के इस प्रगतिशील निर्णय नें बेटियों को पैतृक संपत्ति में उसके कानूनी अधिकार को और मजबूती प्रदान किया है यानि यह कहाँ जा सकता है कि पैतृक संपत्ति में भाई और बहन पूर्णतः बराबर हो गया है।
विस्तृत निर्णय के लिए नीचे की लिंक क्लिक करे।
https://main.sci.gov.in/supremecourt/2018/32601/32601_2018_33_1501_23387_Judgement_11-Aug-2020.pdf
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