वसीयत का अर्थ है: –
अपनी संपत्ति के संबंध में वसीयतकर्ता के इरादे की कानूनी घोषणा है जिसे वह अपनी मृत्यु के बाद लागू करना चाहता है। दूसरे शब्दों में किसी व्यक्ति द्वारा अपने जीवन-काल में किया गया विधिक घोषणा, जिसमें यह व्यवस्था होती है कि वह अपनी मृत्यु के बाद अपनी संपत्ति को क्या करना चाहता है, वसीयत कहलाता है।
विल की दो महत्वपूर्ण विशेषतायें होती है।
प्रथमतः वह वसियतकर्ता की मृत्यु के उपरांत ही प्रभावी होता है और दूसरा वसियतकर्ता अपनी जिंदगी में कभी भी उसे निरस्त कर सकता है।
अपनी एक संपत्ति के संदर्भ में कोई व्यक्ति कितनी बार वसीयत लिख सकता/सकती है?
अपनी एक संपत्ति के संदर्भ में कोई व्यक्ति अपनी जीवन में अनेकों वसीयत निष्पादिन कर सकता है। परंतु एक से अधिक वसीयत होने की स्थिति में अंतिम वसीयत ही प्रभावी होता है और पूर्व में किया गया सभी वसीयत अप्रभावी हो जाता है।
किस संपत्ति का वसीयत किया जा सकता है?
भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम 1925 की धारा 59 के तहत कोई भी वयस्क और स्वस्थचित व्यक्ति अपनी संपत्ति का वसीयत कर सकता है। वसीयतकर्ता दूसरे की संपत्ति का वसीयत नहीं कर सकता है।
किस संपत्ति को अपनी संपत्ति कहेंगे?
किसी व्यक्ति की अपनी संपत्ति दो तरह की होती है। प्रथम खुद की अर्जित संपत्ति और दूसरा पैतृक संपत्ति में का हिस्सा। पैतृक संपत्ति के विभाजन के उपरांत किसी हिस्सेदार को उनके हिस्से में मिली संपत्ति खुःद की संपत्ति कही जाती है और उसका वसीयत किया जा सकता है।
क्या संयुक्त हिन्दू परिवार की संपत्ति में से अपने अविभाजित हिस्से का वसीयत किया जा सकता है?
हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 के प्रभाव में आने से पूर्व विधि की स्थिति और वर्तमान विधि की स्थिति में काफी अंतर आ गया है। 1956 से पूर्व मिताक्षरा शाखा द्वारा शासित कोई हिन्दू जिस संपत्ति का दान नहीं कर सकता था, उस संपत्ति का वसीयत भी नहीं किया जा सकता था। विधि का यह सुस्थापित सिद्धांत है कि कोई भी हिन्दू अविभाजि पैतृक संपत्ति में से अपने हिस्से का दान नहीं कर सकता है। अतः वसीयत भी नहीं कर सकता था। परंतु 1956 के बाद हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 30 पुराने प्रावधान को पूर्णतः बदल दिया है। धारा 30 के अनुसार अब हिन्दू अविभाजित संपत्ति का भी वसीयत कर सकता है।
वसीयत क्यों किया जाता है?
यदि किसी व्यक्ति के (संपत्ति के) दो या दो से अधिक उत्तराधिकारी है तो बाद में दोनों के बीच संपत्ति संबंधी विवाद से बचने के लिए वसीयत अनिवार्य हो जाता है। वसीयत का मूल उद्देश्य वसियतकर्ता के मृत्यु के बाद उनके कानूनी उत्तराधिकारियों के बीच संपत्ति के उत्तराधिकार को लेकर भविष्य में होने वाली दुविधा का निराकरण है।
वसीयत कब करना चाहिए।
मेरे समझ से यदि किसी व्यक्ति के मृत्यु के उपरांत उनके उत्तराधिकारियों के बीच हिस्सा को लेकर विवाद उत्पन्न होने की संभावना हो तो उन्हें आवश्य वसीयत करना चाहिए।
✍दिलीप कुमार
अधिवक्ता
Discussion about this post