किसी महिला के पति या उनके नातेदार द्वारा उस महिला के प्रति क्रूर व्यवहार करना भारतीय दंड संहिता की धारा 498(ए) के अंतर्गत अपराध है और उस महिला को पति और उसके नातेदार के विरुद्ध परिवाद प्रस्तुत करने का अधिकार देती है। वर्ष 1983 में भारतीय दंड संहिता में इस धारा को लोभी पति और उनके नातेदारों द्वारा ससुराल में प्रतारित की जाने वाली महिलाओं की सुरक्षा की दृष्टि से जोड़ा गया है। तत्पश्चात महिलाओं ने अपने विरुद्ध घटित अपराध के विरुद्ध खुलकर शिकायत किया फलस्वरूप इससे संबंधित मुकदमों में बहुत तेजी से बढ़ोतरी हुई है। हालांकि अनेक मामला में पति द्वारा यह आरोप भी लगाया जाता रहा है कि पत्नी ने इस धारा का दुरुपयोग किया है। अपनी सुरक्षा में बनाए गए इस कानून को पत्नी द्वारा हथियार के रूप में प्रयोग करके पति और उनके नातेदारों को परेशान कर दिया है। यानि पत्नी द्वारा पति या उनके नातेदार को झूठे मुकदमे में झूठा फंसा दिया जाता है।
पत्नी 498(ए) का वाद या तो पुलिस के समक्ष प्रस्तुत करती है या सीधे न्यायालय में प्रस्तुत करती है। इस तरह के मुकदमे के कारण पति और उसके नातेदारो को बहुत कठिनाई का सामना करना पड़ता है। पत्नी द्वारा प्रस्तुत इस प्रकार का वाद को यदि सही प्रकार से प्रतिरक्षा नहीं किया गया तो कभी-कभी पति और उनके रिस्तेदार के जीवन में भयंकर परेशानी पैदा कर देता है।
यदि पत्नी द्वारा पुलिस के समक्ष 498A की शिकायत/वाद प्रस्तुत की जाती है तो संबंधित पुलिस थाना एफआईआर दर्ज करने के पहले पति को थाने में बुलाते हैं। पत्नी की शिकायत पर पुलिस फोन कॉल के माध्यम से पति को बुलाती हैं। ऐसे कॉल के बाद पति सामान्यतः थाने में उपस्थित होने से कतराने लगते है। पति को यह डर सताने लगता है कि उसे गिरफ्तार किया जा सकता है। यह डर सही नहीं है। पति का यह तरीका पूर्णतः गलत होता है जो पुलिस को अकारण पति पर शक करने के लिए उत्प्रेरित करता है। वास्तव में पुलिस उसे गिरफ्तार करने के लिए नहीं वल्कि अपना पक्ष रखने के लिए बुलाती है और उपस्थित नहीं होने के कारण पुलिस सही तथ्य को जानने से वंचित हो जाती हो और झूठी शिकायत को भी सही मानकर कार्यवाही करना प्रारंभ कर देती है, जो पति के लिए काफी पीड़ादायक हो सकती है। अतः जब भी जिस व्यक्ति के खिलाफ पुलिस में शिकायत की गई है, उस व्यक्ति को पुलिस अधिकारी बुलाए तब उसे थाने में उपस्थित होना चाहिए और पुलिस के समक्ष अपना पक्ष रखना चाहिए। वास्तव में पुलिस को इस प्रकार बुलाने के पीछे उच्चतम न्यायालय द्वारा राजेश शर्मा बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (Criminal Appeal No. 1265/2017) में दिया गया व्यवस्था है जिसमें माननीय न्यायालय द्वारा यह आदेशित किया गया कि इस धारा का अपराध दर्ज करने के पहले पुलिस को मामले की जांच करनी चाहिए और यह देखना चाहिए कि क्या दोनों पक्षों के बीच समझौता की गुंजाईस है। यदि है तो विवाद को समझौता से हल करने का प्रयास किया जाना चाहिए। पुलिस पति और उसके रिश्तेदारों को थाने में बुलाकर उनके बयान दर्ज करती है, जब भी पुलिस थाने में बुलाए तब पति को सही बातें बतानी चाहिए, अपना पक्ष पुलिस के समक्ष रखना चाहिए। पति को यह बताना चाहिए कि उनके द्वारा पत्नी को किसी भी प्रकार से प्रतारित नहीं किया गया है। यदि पत्नी की कोई अनुचित मांग (जैसे पति को उसके माता-पिता से अलग रहने के लिए मजबूर करना, Abnormal Behaviour, Unwelcoming Attitude, Insulting Language against her in-laws, cheating etc.) है तो पति को इस बात की जानकारी पुलिस को जरूर देनी चाहिए।
पुलिस अधिकारी को यह बताना चाहिए कि महिला ने जो भी आरोप लगाए हैं, वह सभी झूठे हैं और पुलिस अधिकारी से निवेदन करनी चाहिए कि वह पत्नी से सबूत की मांग करें।
जब मुकदमा दर्ज हो जाए तब क्या करें: –
भारतीय दंड संहिता की धारा 498(ए) के अंतर्गत थाने पर बुलाने के बाद अगर पति और उसके रिश्तेदारों पर इस धारा में मुकदमा दर्ज कर दिया जाता है, तब जहाँ तक बिहार राज्य का सवाल है, पति को छोड़कर शेष अभियुक्त को पुलिस ही जमानत दे देती है और पति को न्यायालय में जमानत हेतु आवेदन प्रस्तुत करनी चाहिए। न्यायालय में भी पहले मध्यस्थता करने के प्रयास किया जाता हैं और ऐसा प्रयास विफल हो जाने के बाद ही जमानत दी जाती है। कोर्ट इस मामले में सभी आरोपियों को जमानत दे ही देती है।
पुलिस द्वारा आरोप पत्र प्रस्तुत किए जाने के बाद न्यायालय द्वारा विचारन की कार्रवाही प्रारंभ की जाती है। इस मामले में सबूत और गवाहों का अत्यधिक महत्व होता है। साधारण तौर से इस मामले में कोई दस्तावेजी साक्ष्य नहीं होते हैं, केवल मौखिक गवाह होते हैं। पुलिस द्वारा यदि चार्जशीट में पति द्वारा प्रस्तुत किया गया उपरोक्त तथ्यों का समावेश कर दिया जाता है तो विचारण में पति के लिए काफी सहायक होता है। पत्नी द्वारा प्रस्तुत को उन गवाहों की सूची पति को ध्यान पूर्वक देखनी चाहिए। जितने भी गवाह अभियोजन द्वारा कोर्ट में पेश किए जाते हैं, आरोपियों को अपने वकील के माध्यम से ऐसे गवाह का प्रतिपरीक्षण करवाया जाना चाहिए। इस प्रतिपरीक्षण में गवाह अगर कोई झूठी बात कह रहे हैं तब उस झूठी बात की पोल खुल जाती है, क्योंकि गवाह पुलिस के समक्ष कोई और बयान देते हैं और कोर्ट में आकर कोई अन्य बयान देते हैं। अगर घटना झूठी है तब गवाहों के बीच में विरोधाभास हो ही जाता है, क्योंकि झूठी रिपोर्ट पर कोई भी गवाह को यह नहीं मालूम होता कि उसके बयान में पुलिस ने क्या लिखा है। अगर घटना झूठी होती है तब सभी गवाह अलग-अलग प्रकार से बयान देते हैं। अगर गवाहों के बयानों में किसी भी तरह का विरोधाभास है, तब अभियोजन पर कोर्ट को संदेह हो जाता है। ऐसे संदेह का लाभ देकर कोर्ट आरोपियों को दोषमुक्त कर देती है।
✍दिलीप कुमार
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