• Home
  • About
  • Our Aim
  • Team
  • Photos
  • We Contribute
  • Online Appointment
  • Donate Us
  • FAQs
  • Contact
Menu
  • Home
  • About
  • Our Aim
  • Team
  • Photos
  • We Contribute
  • Online Appointment
  • Donate Us
  • FAQs
  • Contact
Search
Close
Home Latest Articles

वैवाहिक मामलों में क्यों भेजे जाते हैं लीगल नोटिस और क्या है कानूनी बाध्यता।

Adv. Dilip Kumar by Adv. Dilip Kumar
January 2, 2022
in Latest Articles
0
वैवाहिक मामलों में क्यों भेजे जाते हैं लीगल नोटिस और क्या है कानूनी बाध्यता।
  • Facebook
  • Twitter
  • Pinterest
  • LinkedIn
  • WhatsApp

पति और पत्नी के बीच वैवाहिक विवाद होने के परिणामस्वरूप तलाक और भरण पोषण जैसे मामले बनते हैं। तलाक के या भरण पोषण का मामला न्यायालय में दर्ज करवाने के पहले पक्षकार एक दूसरे को लीगल नोटिस भेजते हैं। पक्षकार ऐसे लीगल नोटिस किसी वकील के जरिए भेजते हैं। सवाल यह है कि क्या ऐसे लीगल नोटिस भेजे जाने के लिए कोई कानूनी बाध्यता है या फिर इस लीगल नोटिस को भेजे जाने से पक्षकारों को कोई फायदा होता है।

एक दूसरे को ऐसे लीगल नोटिस भेजे जाने की कानून में तो कोई जरूरत नहीं बताई गई है और इसका कोई भी कानूनी उल्लेख भी नहीं मिलता है। तलाक का मामला कोर्ट में दर्ज करवाने के पहले लीगल नोटिस भेजा जाए ऐसा कोई भी उल्लेख हिंदू विवाह अधिनियम 1955, विशेष विवाह अधिनियम 1956 दोनों ही अधिनियम में कहीं भी नहीं मिलता है। इसी के साथ भरण पोषण के मामले जो कि घरेलू हिंसा अधिनियम 2005, हिंदू विवाह अधिनियम 1955 और दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 125 के तहत आते हैं इन सभी कानूनों में भी भरण पोषण का मामला कोर्ट में लाने के पहले किसी प्रकार के लीगल नोटिस को भेजे जाने का कोई उल्लेख नहीं है।

इससे यह साबित होता है कि लीगल नोटिस भेजा जाना कानूनी तौर पर आवश्यक नहीं है तथा ऐसे नोटिस को भेजे जाने का कानून द्वारा आदेश नहीं दिया गया है। कोई भी पक्षकार अपना तलाक का मामला या फिर भरण पोषण का मामला न्यायालय में सीधे लेकर जा सकता है। भारत के उच्चतम न्यायालय ने भी ऐसा कोई नोटिस मामला लगाने के पहले भेजे जाने के लिए आदेशित नहीं किया है। फिर क्यों भेजे जाते हैं।

लीगल नोटिस:- जब कानून में इस तरह के लीगल नोटिस भेजे जाने की कोई भी कानूनी बाध्यता नहीं है तब लीगल नोटिस क्यों भेजे जाते हैं?

असल में इन लीगल नोटिस को भेजे जाने से कुछ फायदे होते हैं तथा मामले में कोर्ट का भी नजरिया बदलता है। सिविल मामलों में यह माना जाता है कि जहां तक संभव हो न्यायालय के बाहर ही राजीनामे से ऐसे सिविल मामले निपट जाए क्योंकि किसी भी सिविल मामले को कोर्ट में लाना महंगा होता है उसमें समय भी लगता है और रुपए पैसे भी खर्च होते हैं। कुछ कोर्ट फीस जमा करनी होती है और साथ ही वकीलों को भी फीस देना होती है इसलिए यह समझा जाता है कि अगर पक्षकारों को फायदा कोर्ट के बाहर ही हो जाए तब सबसे पहले उसी रास्ते पर जाना चाहिए। जब भी कोई तलाक या भरण पोषण का मामला लेकर पक्षकार किसी वकील से संपर्क करते हैं तब वकील साहब उन्हें पहले एक लीगल नोटिस भेजने का कहते हैं क्योंकि वकील साहब यह बात जानते हैं कि अगर मामला लीगल नोटिस से ही निपट रहा है तब उसे राजीनामा कर निपटा लिया जाए जिससे आए हुए पक्षकारों को समय और रुपए की हानि नहीं हो तथा उनका मामला जल्दी से जल्दी निपट जाए। कभी-कभी यह होता है कि पति और पत्नी के बीच में कोई मध्यस्थता नहीं करता है तथा काफी लंबे समय से दोनों के बीच में किसी प्रकार की कोई बातचीत नहीं होती है। लीगल नोटिस के जरिए एक प्रकार से सेतु बन जाता है तथा दोनों ही पक्षकार को एक दूसरे के बारे में सोचने का समय मिल जाता है। ऐसे लीगल नोटिस में 15 दिन से 1 महीने के भीतर का समय दिया जाता है। पक्षकार इस अवधि में सोचते हैं तथा एक दूसरे के मामले को शीघ्र से शीघ्र निपटाने पर विचार करते हैं। उन दोनों के बीच मध्यस्थता हो जाती है जैसे की पत्नी अगर अपने पति से भरण-पोषण मांग रही है और उसका पति न्यायालय के बाहर ही उससे भरण पोषण देने के लिए तैयार हो गया है तब न्यायालय में कोई भी मुकदमा लगाने की आवश्यकता ही नहीं है। अगर पति ने पत्नी को बगैर किसी कारण के अलग रख रखा है तब पत्नी भरण पोषण की राशि ले सकती है। एक पति का यह कर्तव्य होता है कि अगर उसने किसी महिला से शादी की है और बगैर किसी कारण के महिला को अपने साथ में ही रख रहा है तब उसे खाना खर्चा दे जिससे उसका जीवन चल सके। पति अगर तैयार हो जाता है और भरण पोषण देता है तब पत्नी न्यायालय में किसी प्रकार का मुकदमा नहीं लगाती है। पति हर माह का भरण पोषण पत्नी को अदा कर देता है। इससे एक लीगल नोटिस भेजे जाने से ही पक्षकारों का काम हो जाता है और दोनों के रुपए तथा समय दोनों ही बच जाते हैं और भविष्य में दोनों का घर बसे रहने की संभावनाएं भी बनी रहती है। ऐसा ही लीगल नोटिस तलाक के मामले में भी भेजा जा सकता है जहां एक पक्षकार दूसरे पक्षकार को तलाक लेने के लिए कहता है। अब अगर दूसरा पक्षकार तलाक पर सहमत है तब वह न्यायालय में जाकर आपसी सहमति से तलाक ले सकता है जो कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 बी के तहत दिया जाता है। ऐसे आपसी सहमति से तलाक लेने में दोनों ही पक्षकारों का कम खर्च होता है न्याय शुल्क नहीं लगता है वकीलों की फीस नहीं लगती है और सबसे बड़ी बात समय भी नष्ट नहीं होता है। यह सोचा जाना चाहिए कि अगर दोनों पक्षकारों के बीच अंत में तलाक ही होना है तब ऐसा तलाक यदि समय के पूर्व हो जाए तो दोनों का भविष्य भी बचा रहता है और दोनों का रुपया भी बच जाता है। कैसे भेजे लीगल नोटिस:- हालांकि ऐसा लीगल नोटिस भेजे जाने के लिए किसी वकील की आवश्यकता नहीं है। ऐसा लीगल नोटिस हम स्वयं भी भेज सकते हैं। इस नोटिस को ईमेल के माध्यम से भी भेजा जा सकता है, व्हाट्सएप के जरिए भी भेजा जा सकता है परंतु ईमेल के जरिए भेजे गए नोटिस का ठीक सबूत नहीं होता है और ऐसा ही व्हाट्सएप के जरिए भेजे गए नोटिस का भी सबूत नहीं होता है। इसलिए ऐसा रास्ता अख्तियार करना चाहिए जिससे लीगल नोटिस भेजे जाने का एक सबूत भी बने और ऐसे लीगल नोटिस को किसी वकील के जरिए ही भेजा जाना चाहिए क्योंकि एक वकील को कानून की सभी जानकारियां होती है और वह उन ग्राउंड पर लीगल नोटिस भेजता है जिन ग्राउंड पर आगे जाकर न्यायालय में मुकदमा लगाया जा सके तथा न्यायाधीश को यह बताया जा सकेगी हमने न्यायालय के बाहर प्रयास किए हैं और पक्षकार किसी भी बात पर सहमत नहीं है और वह मामले को निपटाना नहीं जाता है। इसलिए अगर वकील लीगल नोटिस भेजते हैं तो मामले में थोड़ा दम होता है और पक्षकार एक दूसरे को गंभीरता से लेते हैं क्योंकि वकील साहब वहां पर अच्छे ग्राउंड्स बनाते हैं जिन पर भविष्य मुकदमा संस्थित किया जा सकता है। ऐसा लीगल नोटिस एक साधारण डाक के माध्यम से रजिस्टर आईडी से भेजा जाता है। रजिस्टर एडी से भेजे जाने का कारण यह है कि उसमें एक पर्ची लगी होती है जिस पर्ची में यह उल्लेख होता है कि कोई भी लेटर किसी व्यक्ति द्वारा क्यों नहीं लिया गया है और अगर लिया गया है तो उसके हस्ताक्षर उस पर्ची में लिए जाते हैं। इसी के साथ आजकल ऑनलाइन भी इसका जवाब मिल जाता है। पक्षकार भेजी गई डाक के नंबर को इंडियन पोस्ट की वेबसाइट पर जब ट्रेस करते हैं तो उससे जुड़ी हुई सभी जानकारियां पक्षकारों को मिल जाती है जैसे कि किस दिनांक को को वह डाक लगाई गई है और किस दिनांक को वह डाक पाने वाले को प्राप्त हुई है और अगर प्राप्त नहीं हुई है तो क्यों नहीं हुई है, क्या पता नहीं मिला या लेने वाले ने लेने से इंकार कर दिया। यह सभी बातों की जानकारी रजिस्टर डाक में उपलब्ध होती है इसलिए ऐसा लीगल नोटिस एक रजिस्टर डाक द्वारा भेजा जाता है जिसमें लिफाफे के साथ एक रजिस्टर एडी भी लगाई जाती है। इसे लीगल नोटिस को भेजने के बाद पक्षकार उसका जवाब भी देते है। बहुत से पक्षकार जवाब नहीं देते हैं। जवाब देने या नहीं देने की कोई बाध्यता नहीं है पर अगर इसका जवाब दिया जाए तो भविष्य में न्यायालय में लगाए जाने वाले मुकदमे में इससे सहायता मिलती है तथा न्यायधीश को यह बताया जा सकता है कि हमने भेजे गए लीगल नोटिस का कोई जवाब दिया है और हम भी मामले को लेकर गंभीर हैं।

इससे न्यायाधीश का नजरिया किसी एक पक्षकार के मामले में बनने से नहीं बचता है तथा वे दोनों ही पक्षकारों को एक ही नजरिए से देखता है तथा यह मानता है कि मामले को दोनों पक्षकार गंभीरता से ले रहे हैं।

साभार LiveLaw

 

Adv. Dilip Kumar

  • Facebook
  • Twitter
  • Pinterest
  • LinkedIn
  • WhatsApp
Previous Post

आपस में मोबाईल का पासवर्ड सांझा करनेवाली दम्पत्ति के बीच तलाक की संभावना न के बराबर।

Next Post

पचास लाख दो और डिवोर्स लो।

Adv. Dilip Kumar

Adv. Dilip Kumar

Next Post
पचास लाख दो और डिवोर्स लो।

पचास लाख दो और डिवोर्स लो।

Discussion about this post

Cases Resolved by the DE

Full Stop No. 29/2025 (Family – Dispute)

Full Stop No. 29/2025 (Family – Dispute)

by Adv. Dilip Kumar
September 17, 2025
0

Dispute-Eater Run & Managed by Ram Yatan Sharma Memorial Trust...

Full-Stop No. 28/2025 (Criminal Dispute)

Full-Stop No. 28/2025 (Criminal Dispute)

by Adv. Dilip Kumar
September 10, 2025
0

Dispute-Eater Run & Managed by Ram Yatan Sharma Memorial Trust,...

Full-Stop No. 27/2025 (Family Dispute)

Full-Stop No. 27/2025 (Family Dispute)

by Adv. Dilip Kumar
August 13, 2025
0

Dispute-Eater Run & Managed by Ram Yatan Sharma Memorial Trust,...

Load More

Latest Articles on DE

Dispute Eater Theory of Judicial Reform Part-01

Dispute Eater Theory of Judicial Reform Part-01

by Adv. Dilip Kumar
September 24, 2025
0

  व्यवहार प्रक्रिया संहिता, 1908 में आवश्यक संशोधनों द्वारा सिविल...

Dispute Eater Theory of Bail.

Dispute Eater Theory of Bail.

by Adv. Dilip Kumar
September 23, 2025
0

सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय का समय किस काम के...

महिला अधिकार : असली पीड़ित बनाम नकली पीड़ित।

महिला अधिकार : असली पीड़ित बनाम नकली पीड़ित।

by Adv. Dilip Kumar
September 3, 2025
0

महिला अधिकार : असली पीड़ित बनाम नकली पीड़ित भारतीय समाज...

Judgement from the Court

संयुक्त वसीयत की स्थिति में वसीयत का प्रावधान केवल मृतक वसीयतकर्ता की संपत्ति तक ही सीमित होगा जीवित वसीयतकर्ता की संपत्ति पर प्रभावी नहीं होगा-  केरल उच्च न्यायालय।

संयुक्त वसीयत की स्थिति में वसीयत का प्रावधान केवल मृतक वसीयतकर्ता की संपत्ति तक ही सीमित होगा जीवित वसीयतकर्ता की संपत्ति पर प्रभावी नहीं होगा-  केरल उच्च न्यायालय।

January 7, 2023
बहू को है सास-ससुर के घर में रहने का अधिकार – सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला,  

बहू को है सास-ससुर के घर में रहने का अधिकार – सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला,  

September 19, 2022
नोटरी विवाह/तलाक दस्तावेजों को निष्पादित करने के लिए अधिकृत नहीं हैं: – MP HC

नोटरी विवाह/तलाक दस्तावेजों को निष्पादित करने के लिए अधिकृत नहीं हैं: – MP HC

November 24, 2021
Load More
  • Home
  • About
  • Our Aim
  • Team
  • Photos
  • We Contribute
  • Online Appointment
  • Donate Us
  • FAQs
  • Contact
  • Home
  • About
  • Our Aim
  • Team
  • Photos
  • We Contribute
  • Online Appointment
  • Donate Us
  • FAQs
  • Contact
Facebook Twitter Youtube Linkedin
© 2019-2022 – Dispute Eater

Run & Managed by – RAM YATAN SHARMA MEMORIAL TRUST®

made with love at Ambit Solutions (7488039982)
WhatsApp chat