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महिला अधिकार : असली पीड़ित बनाम नकली पीड़ित।

Adv. Dilip Kumar by Adv. Dilip Kumar
September 3, 2025
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महिला अधिकार : असली पीड़ित बनाम नकली पीड़ित।
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महिला अधिकार : असली पीड़ित बनाम नकली पीड़ित

भारतीय समाज में लंबे समय तक महिलाओं के साथ अन्याय होता रहा। दहेज, घरेलू हिंसा, आर्थिक निर्भरता और सामाजिक दबावों ने महिला को असमान स्थिति में रखा। इन्हीं कारणों से भारतीय विधायिका और न्यायपालिका ने महिलाओं को विशेष अधिकार दिए ताकि वे शोषण से मुक्त होकर सम्मानजनक जीवन जी सकें।

लेकिन समय के साथ इन अधिकारों का उचित प्रयोग करने वाली असली पीड़ित और गलत लाभ उठाने वाली नकली पीड़ित में अंतर करना कठिन होता जा रहा है। न्याय तभी संभव है जब इस अंतर को स्पष्ट किया जाए।

महिला को दिए गए प्रमुख अधिकार

  1. दहेज प्रताड़ना से सुरक्षा (धारा 498ए, आईपीसी NOW 85 BNS)

महिला को यह अधिकार है कि यदि उसे दहेज के लिए प्रताड़ित किया जाए तो वह अपने पति और रिश्तेदारों के खिलाफ मामला दर्ज करा सके।

    1. सकारात्मक उदाहरण: अनेक महिलाओं ने इस प्रावधान का उपयोग कर दहेज उत्पीड़न से मुक्ति पाई और दोषियों को दंड दिलाया।
    2. दुरुपयोग: Arnesh Kumar v. State of Bihar (2014) में सुप्रीम कोर्ट ने माना कि धारा 498ए का अंधाधुंध प्रयोग हो रहा है और निर्दोषों की गिरफ्तारी से बचना आवश्यक है।
  1. घरेलू हिंसा से संरक्षण अधिनियम, 2005

यह कानून महिला को मानसिक, शारीरिक, आर्थिक और भावनात्मक हिंसा से सुरक्षा देता है।

    1. सकारात्मक उदाहरण: कई मामलों में न्यायालय ने महिला को घर में रहने का अधिकार, सुरक्षा आदेश और भरण–पोषण प्रदान किया।
    2. दुरुपयोग: Rajesh Sharma v. State of U.P. (2017) में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बिना जांच पूरे परिवार को फँसाना उचित नहीं है।
  1. भरण–पोषण का अधिकार (धारा 125, दंप्रसं NOW 144 BNSS)

महिला और बच्चों के जीवनयापन के लिए पति से भरण–पोषण दिलाने का अधिकार है।

  1. सकारात्मक उदाहरण: जिन महिलाओं के पास आय का कोई साधन नहीं था, उन्हें इस प्रावधान से न्याय मिला।
    1. दुरुपयोग: Mamta Jaiswal v. Rajesh Jaiswal (M.P. High Court, 2000) में कहा गया कि शिक्षित और नौकरी करने योग्य महिला केवल पति पर निर्भर नहीं रह सकती।

दुरुपयोग के कुछ सामान्य रूप

  1. झूठे दहेज और घरेलू हिंसा के मुकदमे।
  1. पूरे परिवार को एक साथ फँसाना, जबकि वास्तविक विवाद केवल पति–पत्नी में हो।
  2. सक्षम महिला द्वारा अनुचित रूप से भारी भरण–पोषण की मांग करना।
  3. मुकदमेबाजी का उपयोग समझौते और धन उगाही के साधन के रूप में करना।
  4. Preeti Gupta v. State of Jharkhand (2010) में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों से न्यायालय का समय और निर्दोषों का जीवन दोनों प्रभावित होते हैं।

संतुलन की आवश्यकता

महिला अधिकार समाज में न्याय और समानता के लिए अपरिहार्य हैं। यदि ये अधिकार न दिए जाते तो आज भी अनेक महिलाएँ प्रताड़ना और शोषण का शिकार होतीं। लेकिन दूसरी ओर, इन अधिकारों का गलत इस्तेमाल पुरुष और उसके परिवार को भी अन्याय का शिकार बनाता है।

इसलिए—

  1. कानून और अदालतों को कठोर मानदंड अपनाने चाहिए ताकि असली और नकली पीड़ित की पहचान हो सके।
  2. महिलाओं को भी यह समझना होगा कि अधिकारों का उद्देश्य न्याय है, प्रतिशोध नहीं।
  3. पुरुषों के लिए भी समान न्याय सुनिश्चित करना उतना ही आवश्यक है जितना महिलाओं के लिए।

न्याय तभी पूर्ण है जब वह सत्य पीड़ित की रक्षा करे और झूठे परिवादों को हतोत्साहित करे। महिला अधिकारों का संरक्षण और उनके दुरुपयोग की रोकथाम, दोनों ही भारतीय न्याय व्यवस्था के लिए समान रूप से आवश्यक हैं।

✍ दिलीप कुमार
संपत्ति और परिवार के अधिवक्ता

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