राज्य में विवादों को कम करने की चल रही पहल के तहत रैयती भूमि से जुड़े टाइटल केस की सुनवाई करने का अधिकार डीसीएलआर को दिया गया है। अभी तक रैयती भूमि से जुड़े टाइटल केस की सुनवाई करने का अधिकार सिविल न्यायालय के क्षेत्राधिकार में था। बिहार सरकार द्वारा वर्ष 2010 में बिहार भूमि विवाद निराकरण अधिनियम 2009 लाया गया और भूमि विवाद से जुड़े कुछ प्रकार के मामला की सुनवाई करने का अधिकार डीसीएलआर को दिया गया।
सरकार का मानना है कि भूमि विवाद का वैसा मामला जिसमें खतियान, सीमा विवाद, राजस्व अभिलेखों की अंतर्वस्तु (प्रविष्टियाँ), रैयती भूमि के गैर कानूनी दखल, सार्वजनिक भूमि के आवंटियों की जबरन बेदखली से जुड़े विवाद के पक्षकारों को अनावश्यक परेशानी का सामना करना पड़ता है। उपरोक्त विवाद के निराकरण के लिए पहले से कुल 06 प्रकार के कानून बने हुए है। ये कानून है:-
- बिहार भूमि सुधार कानून 1950,
- बिहार काश्तकारी अधिनियम 1885,
- बिहार प्रश्रय-प्राप्त व्यक्ति वासगित काश्तकारी अधिनियम 1947,
- बिहार भू-दान यज्ञ अधिनियम 1954
- बिहार भूमि सुधार अधिनियम 1961 और
- बिहार चकबंदी अधिनियम 1956.
उपरिक्त 06 मंचों की प्रक्रिया भी अलग-अलग थी। सरकार द्वारा लाया गया वर्तमान कानून उपरोक्त 06 मंचों की जगह एक मंच और एक प्रक्रिया प्रदान करना है।
मैं वर्तमान भूमि सुधार कानून की प्रासंगिकता को दो उदाहरण से समझाना चाहता हूँ। यदि दो व्यक्ति ने एक ही जमीन मालिक से अलग-अलग तिथि को जमीन खरीदा। खरीदने से पूर्व किसी ने जमीन की पैमाईस नहीं कराया। एक व्यक्ति ने थोड़ा अधिक भूमि पर कब्जा कर लिया। पीड़ित पक्ष को सिविल न्यायालय में प्रथमतः अपना टाइटल साबित करना पड़ेगा तत्पश्चात उसे रिकवरी ऑफ पज़ेशन की डिक्री प्राप्त हो सकेगा। अब यह वाद DCLR के यहाँ प्रस्तुत किया जा सकेगा।
उसी प्रकार बहुतेरे ऐसे मामलें है जिसमें भूमि का कब्जा जिसके पास है उसका नाम भू-राजस्व अभिलेख में नहीं है और जिसका नाम भू-राजस्व अभिलेख में तो है परंतु उसका कब्जा नहीं है। वैसी परिस्थिति में भी पीड़ित पक्ष को सिविल न्यायालय में प्रथमतः अपना टाइटल साबित करना पड़ेगा तत्पश्चात उसे रिकवरी ऑफ पज़ेशन की डिक्री प्राप्त हो सकेगा। परंतु भू-राजस्व अभिलेख में संशोधन की डिक्री पारित करने से सिविल न्यायालय परहेज करती है। उपरोक्त मामलें में संक्षिप्त विचारण की कोई व्यवस्था भी नहीं है। अतः छोटा-छोटा मामला भी लंबा चलता है। अब यह वाद DCLR के यहाँ प्रस्तुत किया जा सकेगा। अनेकों मामला ऐसा है जिसमें स्थल पर पहुंचकर आसानी से विवाद का हल किया जा सकता है। बिहार भूमि सुधार कानून में डीसीएलआर को खुद स्थल जांच करने का अधिकार दिया गया है, जो मामले की त्वरित निष्पादन में सहायक साबित हो सकता है।
हमारी वर्तमान न्यायिक व्यवस्था भी सिविल वाद के प्रति काफी उदासीन है। फलतः न्याय की प्राप्ति में तीन-चार पीढ़ी गुजर जाती है। सिविल वाद के प्रति यह न्यायिक उदासीनता आम जनता को अकल्पनीय नुकसान पहुँचाया है।
उम्मीद की जानी चाहिए कि वर्तमान भूमि सुधार कानून, मुकदमें के बोझ से दबे “मी-लॉर्ड” के लड़खड़ाती पांव को संवल देने का काम करेगा। साथ-साथ यह भी उम्मीद की जानी चाहिए कि आने वाले समय में भूमि विवाद से पीड़ित व्यक्ति को त्वरित तथा निष्पक्ष न्याय देने में बिहार भूमि सुधार कानून प्रभावी होगा और न्यायालय को मुकदमा के बोझ से भी छुट्टी मिलेगी।
✍दिलीप कुमार
अधिवक्ता
Discussion about this post