हिंदू संयुक्त परिवार के पिता के पास अपने जीवन काल में किसी भी क्षण पारिवारिक संपत्ति को विभाजित करने की शक्ति प्राप्त है, शर्त केवल इतना है कि वह अपने बेटों को अपने साथ समान हिस्सा दे, और यदि वह ऐसा करता है, तो कानून की नजर में वह एक वैध विभाजन है। उक्त विभाजन के बाद न केवल पिता अपने पुत्र से अलग हो जाता है बल्कि पुत्रों के बीच भी विभाजन हो जाता है। पिता द्वारा किया गया उक्त विभाजन में या उस शक्ति के प्रयोग के लिए पुत्रों की सहमति आवश्यक नहीं है। एक हिन्दू पिता के इस अधिकार को कानून की नजर में “अजीब शक्ति” की “सुपीरियर पावर” के रूप में जाना जाता है।
The Father of the Hindu Joint family has the power to divide family property at any moment during his life, provided he gives his sons equal shares with himself, and if he does so, the effect in law is not only a separation of the father from the sons but a separation from the sons inter se. The consent of the sons is not necessary for the exercise of that power. This right of a father is known as “Superior Power” or Peculiar Power” or Patia Potestas”.
✍Advocate Dilip Kumar
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