न्यायालय से मुकदमा का बोझ कम करना भारत के प्रत्येक नागरिक की जिम्मेदारी होनी चाहिए। अक्सर न्याय में विलंब के लिए प्रक्रियात्मक विधि (जो बहुत हद तक लचीला है) को कटघड़े में खड़ा किया जाता है। अदालत को विवाद का फैसला करने के लिए कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया का पालन करना होता है। न्यायिक प्रक्रिया कठोर या लचीली हो, यह शोध का विषय हो सकता है, लेकिन विवादों के निबटारे में देरी के लिए प्रक्रियात्मक कानून में लचीलेपन स्वरूप को पूर्णतः दोष देना सही नहीं है।
ट्रस्ट का विचार है कि केवल उन्हीं मामलों को, जिनमें न्यायिक दिमाग की जरूरत हो, उन्हें अदालत में दायर किया जाना चाहिए। यह महसूस किया गया है कि कई मामलों में वादी / शिकायतकर्ता द्वारा अनुचित लाभ प्राप्त करने के लिए न्यायिक प्रक्रिया का चालाकी से उपयोग किया जाता है। कुछ मामलों को अदालत में जल्दबाज़ी में पेश कर दिया जाता है। जब वादी एक बार कदम उठा लेता है, तो फिर पीछे लौटने में अपमानित महसूस करता है। ट्रस्ट की टीम वैसे विवादों को समझौता द्वारा हल करने का प्रयास करती है जो अनुचित उद्देश्य, जल्दबाजी में प्रस्तुत किया जाता है, या जिसमें न्यायिक दिमाग की आवश्यकता ही नहीं होती है। ट्रस्ट की टीम सभी प्रकार के पारिवारिक विवाद, संपत्ति-संबंधी विवाद और सुलहनीय आपराधिक विवाद को सुलझाने का प्रयास करती है।
ट्रस्ट का मानना है कि यदि उपरोक्त प्रकार के विवाद में, वाद प्रस्तुत करने से पूर्व अनुभवी व्यक्तियों द्वारा दोनों पक्षों की कौनसेलिंग की जाये, तो उसमें से बहुत से मामलें को न्यायालय में प्रस्तुत करने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी।
ट्रस्ट के पास उपरोक्त उद्देश्यों को पूरा करने के लिए एक टीम है। ट्रस्ट अपनी टीम को और अधिक व्यापक बनाने की कोशिश कर रहा है। ट्रस्ट उन व्यक्तियों से सलाह, सेवा और सहयोग की अपेक्षा करता है जो उपरोक्त क्षेत्र में ज्ञान और रुचि रखते हैं।
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