SUPREME COURT OF INDIA
Criminal Appeal No. 615/2020
ABHILASHA
V/S
PARKASH & ORS.
Date: – 15-09-2020
वयस्क अविवाहित बेटी, यदि किसी शारीरिक या मानसिक असमानता से पीड़ित है, तभी वह धारा 125 Cr.P.C के तहत पिता से भरण-पोषण का दावा कर सकती : सुप्रीम कोर्ट.
माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने उपरोक्त निर्णय में धारा 125(ग) Cr.P.C और 20(3) हिन्दू दत्तक तथा भरण-पोषण अधिनियम 1956 के तहत अविवाहित किन्तु वयस्क पुत्री के भरण-पोषण के अधिकार की विवेचना की है।
क्या है धारा 125(ग) Cr.P.C और 20(3) हिन्दू दत्तक तथा भरण-पोषण अधिनियम 1956।
- धारा 125(ग) P.C:- यदि पर्याप्त साधनों वाला कोई व्यक्ति अपनी धर्मज या अधर्मज संतान का (जो विवाहित पुत्री नहीं है), जिसने वयस्कता प्राप्त कर ली है, जहाँ ऐसी संतान किसी शारीरिक या मानसिक असामान्यता या क्षति के कारण अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ है।
- 20(3) हिन्दू दत्तक तथा भरण-पोषण अधिनियम 1956: – किसी व्यक्ति (हिन्दू) को अपने वृद्ध या शिथिलांग जनकों का या किसी पुत्री का, जो अविवाहिता हो, भरण-पोषण करने की बाध्यता का विस्तार वहां तक होगा जहां तक कि जनक या अविवाहित पुत्री, यथास्थिति, स्वयं अपने उपार्जनों या अन्य संपत्ति से अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ हो।
माननीय सर्वोच्चय न्यायालय के निर्णय के बाद वास्तव में धारा 125 (ग) Cr.P.C में वर्णित शब्द “जहाँ ऐसी संतान” की जगह “यदि वह” शब्द प्रतिस्थापित हो गया है। कोर्ट ने माना है कि वयस्क हो चुकी अविवाहित बेटी, यदि वह किसी शारीरिक या मानसिक असामान्यता/चोट से पीड़ित नहीं है तो धारा 125 सीआरपीसी की कार्यवाही के तहत, अपने पिता से भरण-पोषण का दावा करने की हकदार नहीं है।
सर्वोच्चय न्यायालय के अनुसार हिंदू दत्तक एवं भरण-पोषण अधिनियम, 1956 की धारा 20 (3) के अनुसार एक अविवाहित हिंदू बेटी अपने पिता से भरण-पोषण का दावा कर सकती है, बशर्ते कि वह यह साबित करे कि वह अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ है, जिस अधिकार के लिए उसका आवेदन/ वाद अधिनियम की धारा 20 के तहत होना चाहिए।
यानि कोई हिन्दू वयस्क अविवाहित बेटी किसी शारीरिक या मानसिक असामान्यता या क्षति के कारण अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ है तभी वह धारा 125 Cr.P.C के तहत अपने पिता से भरण-पोषण की मांग कर सकती है। एक स्वस्थ्य हिन्दू वयस्क अविवाहित पुत्री यदि अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ है तो वह अपने पिता से केवल और केवल हिंदू दत्तक एवं भरण-पोषण अधिनियम, 1956 की धारा 20 (3) के अनुसार भरण – पोषण की मांग कर सकती है। अविवाहित बेटी स्पष्ट रूप से अपने पिता से भरण-पोषण की हकदार है, जब तक कि वह विवाहित न हो जाए, भले ही वह वयस्क हो गई हो, जो कि धारा 20 (3) द्वारा मान्यता प्राप्त वैधानिक अधिकार है और कानून के अनुसार अविवाहित बेटी द्वारा लागू कराया जा सकता है।
https://main.sci.gov.in/supremecourt/2018/34880/34880_2018_35_1501_23965_Judgement_15-Sep-2020.pdf
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