आज मेरी 25वीं पुण्यतिथि है. आज ही के दिन मेरी मृत्यु हुई थी. मैं भाग्यहीन था, मुझे ही अपने बेटा की अर्थी को श्मशान तक पहुँचाना पड़ा था. वह भी इसलिए क्योंकि उस समय मेरा पोता मात्र 03 वर्ष का था. मैं प्राइवेट शिक्षक था. दिन-रात मेहनत करके मैंने शहर में जमीन का एक छोटा सा टुकरा ख़रीदा था. लेकिन स्थानीय दबंगों ने मुझे मेरी जमीन से बेदखल कर दिया था. कब्जे की पुनः प्राप्ति के लिए मैंने न्यायालय का दरवाजा खटखटाया. मैं करता भी क्या? यदि मैं सबल होता तो मैं, मेरी जमीन से बेदखल ही नहीं होता. मेरे पास न्यायालय के शरण में जाने के अलावे कोई दूसरा विकल्प ही नहीं था. न्यायाधीश भगवान की प्रतिमूर्ति होते है, ऐसा ही विश्वास लेकर मैं न्यायालय पहुँचा था. निचली न्यायालय नें मेरे पक्ष में फैसला सुनाया परंतु प्रतिवादी द्वारा अपील किये जाने पर उपरी अदालत ने निचली अदालत के आदेश के क्रियान्वयन पर रोक लगा दिया. मामला अभी भी उपरी अदालत में लंबित है. मामला अभी भी समाप्त नहीं हुआ है, अंतर केवल इतना ही है कि न्यायालय का स्थान बदल गया है. यानि मामला निचली न्यायालय से निकलकर उपरी न्यायालय में पहुँच गया हैं.
मरते समय मैनें अपने पोता के लिए उत्तराधिकार में केवल एक वाद छोड़ था. मेरा पोता आज लगभग 28 वर्ष का हो गया है. जज के नाक के नीचे पेशकार द्वारा मांगे जा रहे पेशी के रूप में अवैध वसूली उसको अटपटा लग रहा है, लगना भी चाहिए, क्योंकि वह प्राइवेट कंपनी में नौकरी करता है. प्राइवेट कम्पनियाँ इन छोटी-छोटी सी दिखने वाली मामलों में काफी कठोर रुख रखती है. मेरा मानना है कि न्यायाधीश में कर्तव्यबोध की कमी, अधिवक्ता में अनुभव की कमी और न्यायिक कर्मचारी की कर्तव्यहीनता, न्याय की दिशा में उठाई गयी प्रत्येक कदम की चाल धीमी कर देती है. न्यायाधीश से मेरी यही प्रार्थना है कि मुझे मेरी न्याय मेरे पोता की जिंदगी में दिला दो, मेरी हड्डी पूर्ण रूप से गलने से पूर्व मेरी अंतिम इच्छा की पूर्ति कर दो.
मेरा एक सवाल भगवान रूपी नयायमूर्ति से है, न्याय दिलाने के लिए कसम खा चुके अधिवक्ताओं से है, क्या भारत में वादी/प्रतिवादी को अपने जिंदगी में न्याय पाने का हक़ नहीं है? आखिर क्या कारण है कि मृत वादी को अपने पोता के जिंदगी में न्याय की गुहार लगानी पर रही है. त्वरित न्याय, समय की मांग है. इसके लिए सरकार और न्यायपालिका द्वारा जो कदम उठाए गए है उसमें आम नागरिक को भी सहयोग करना होगा. संस्था का यह मानना है कि यदि प्रत्येक अधिवक्ता माह में मात्र एक वाद का सुलह करा दें, तो उपरोक्त मृत आत्मा सहित लगभग लाखों मृत-आत्माओं की इच्छा की पूर्ति हो जाएगी.
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